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Gyanvapi Case : वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में 30 साल पुराने मामले की सुनवाई पर रोक, पक्षकारों में कानूनी दावपेंच जारी

लंबे समय तक चर्चा का केंद्र बिंदु बने रहे रामजन्म भूमि विवाद के सुलझने के बाद एक नया विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है। यह काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ा है। इसको लेकर पक्षकारों में कानूनी दावपेंच जारी है। फिलहाल मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 10 Sep 2021 10:37 PM (IST)Updated: Fri, 10 Sep 2021 10:37 PM (IST)
Gyanvapi Case : वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में 30 साल पुराने मामले की सुनवाई पर रोक, पक्षकारों में कानूनी दावपेंच जारी
वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में 30 साल पुराने मामले की सुनवाई पर रोक लगी है

जागरण संवाददाता, वाराणसी। लंबे समय तक चर्चा का केंद्र बिंदु बने रहे रामजन्म भूमि विवाद के सुलझने के बाद एक नया विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है। यह काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ा है। इसको लेकर पक्षकारों में कानूनी दावपेंच जारी है। फिलहाल मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है। ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने को लेकर सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) की अदालत में लंबित मुकदमे की सुनवाई पर रोक लग गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) की अदालत में लंबित इस मामले की सुनवाई पर अगली तिथि तक रोक लगाई है। इससे पहले वर्ष 1998 में सुनवाई पर रोक लगी थी जो काफी समय तक प्रभावी रही।

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विदित हो कि पं. सोमनाथ व्यास और अन्य ने 15 अक्टूबर 1991 को ज्ञानवापी में नए मंदिर का निर्माण करने और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार देने को लेकर सिविल जज की अदालत में वाद दायर किया था। सात मार्च 2000 को पं.सोमनाथ व्यास की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात उनके स्थान पर मुकदमे में पैरवी करने के लिए पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को अदालत ने 11 अक्टूबर 2019 को वाद मित्र नियुक्त किया। मुकदमे की सुनवाई के दौरान वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने अयोध्या की भांति ज्ञानवापी परिसर व कथित विवादित स्थल का भौतिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय सर्वेक्षण विभाग से रडार तकनीक से सर्वेक्षण कराने की अदालत से अपील की। इस अपील पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से आपत्ति की गई। सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) आशुतोष तिवारी ने वादी और प्रतिवादी पक्ष की बहसों को सुनने व नजीरों के अवलोकन के बाद आठ अप्रैल 2021 को वाद मित्र की अपील को मंजूर कर लिया और परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी कर दिया। इस आदेश के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से जिला जज की अदालत में निगरानी याचिका दायर की गई। साथ ही निगरानी याचिका पर सुनवाई कर इसके त्वरित निस्तारण करने के लिए जिला जज को निर्देश देने व सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) के आठ अप्रैल 2021 को पारित आदेश को स्थगित करने के बाबत अपील करते हुए हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई। इस बीच 12 अगस्त 2021 को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जिला जज की अदालत में दायर निगरानी याचिका वापस ले ली।

हाईकोर्ट में दायर याचिका में संशोधन के लिए प्रार्थना पत्र देकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) के आठ अप्रैल के आदेश को चुनौती दी गई। प्राचीन मूॢत स्वयंभू ज्योतिॄलग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से पक्षकारों ने इस प्रार्थना पत्र पर आपत्ति जताते हुए इसे निरस्त करने की दलील दी। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने नौ सितंबर 2021 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के संशोधन प्रार्थना पत्र को स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट ने याचिका संशोधित होने के पश्चात इसकी संशोधित प्रतियां प्राचीन मूॢत स्वयंभू ज्योतिॄलग भगवान विश्वेश्वरनाथ के पक्षकारों के अधिवक्ता व केंद्र सरकार व राज्य सरकार के अधिवक्ताओं को देने का आदेश दिया। साथ ही अगली सुनवाई के लिए आठ अक्टूबर 2021 की तिथि निर्धारित कर दी। हाईकोर्ट ने उक्त तिथि तक सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत में लंबित मुकदमा (मुकदमा संख्या 610 सन 1991) की अग्रिम सुनवाई पर रोक लगा दी। वादी मंदिर पक्ष उक्त आदेश से व्यथित है और वे उक्त आदेश को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देंगे।

मुकदमे की पोषणीयता को लंबित याचिकाओं पर फैसले का इंतजार

वर्ष 1991 में प्राचीन मूॢत स्वयंभू ज्योर्तिलिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ के पक्षकारों की ओर से दाखिल मुकदमे को पूजा स्थल विशेष उपबंध अधिनियम 1991 की धारा चार से बाधित किए जाने और 1998 में अपर जिला जज (प्रथम) के आदेश को लेकर हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं थी। इस मुकदमे की पोषणीयता को लेकर दाखिल याचिकाओं पर 16 मार्च 2021 को दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी है। हाईकोर्ट ने बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है। अग्रिम सुनवाई हेतु 14 सितंबर 2021 नियत की गई है।

अपर जिला जज (प्रथम) ने पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र का निरीक्षण कराए जाने व मौके का भौतिक साक्ष्य प्राप्त करके अन्य वाद-बिंदुओं के साथ साक्ष्य लेकर प्रार्थना पत्र का निस्तारण करने का निर्णय दिया था। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और अन्य ने प्राचीन मूॢत स्वयंभू ज्योतिॄलग भगवान विश्वेश्वरनाथ के पक्षकारों की ओर से वर्ष 1991 में दायर इस वाद को निरस्त करने की अदालत से अपील की थी जिसे अपर जिला जज (प्रथम) की अदालत ने निरस्त कर दिया था।

सुनवाई के क्षेत्राधिकार को जिला जज की अदालत में लंबित है याचिका

ज्ञानवापी मामले की सुनवाई करने के सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत के क्षेत्राधिकार के प्रश्न को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से चुनौती दी गई थी। सुनवाई के दौरान सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से दलील दी गई कि वक्फ न्यायाधिकरण के गठन के बाद उक्त मामले की सुनवाई करने का सिविल जज को क्षेत्राधिकार नहीं है। इस दलील पर वादमित्र और वादी पक्ष के अधिवक्ताओं ने आपत्ति की। अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने और उनकी ओर से दाखिल नजीरों के अवलोकन के पश्चात 25 फरवरी 2020 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की चुनौती को अस्वीकार कर दिया। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि मुसलमानों के मध्य विवाद की सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार वक्फ न्यायाधिकरण को है जबकि गैर मुस्लिम के स्वत्व की सुनवाई का क्षेत्राधिकार सिविल कोर्ट को है। सिविल जज के इस फैसले के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने जिला जज की अदालत में निगरानी याचिका दायर की। उक्त याचिका पर सुनवाई के लिए जिला जज डा.अजय कृष्ण विश्वेश ने 13 अक्टूबर की तिथि मुकर्रर की है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की खारिज हो चुकी है याचिका

ज्ञानवापी मामले में पक्षकार (वाद मित्र) बनाए जाने के लिए जगतगुरू आदि शंकराचार्य के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया था जिसे अदालत ने आठ मार्च 2021 को खारिज कर दिया था। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने वादी (देवता) पक्ष का बेहतर प्रतिनिधित्व और वाद के निस्तारण में सहयोग करने की भावना से पक्षकार बनने की अपील की थी। यह भी दलील दी गई थी कि ज्ञानवापी क्षेत्र का कथित विवादित स्थल मंदिर का अंश है। इससे संबंधित तमाम साक्ष्य उनके पास उपलब्ध हैं, जिसे वह अदालत में दाखिल करना चाहते हैं। अदालत ने यह कहकर उनकी अपील को ठुकरा दी कि अदालत को यह अधिकार है कि स्वयं भी जरुरत होने पर अलग से भी ऐसे व्यक्ति को साक्ष्य के लिए तलब कर सकती है। इसके लिए पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं है।

ज्ञानवापी मामले में पांच महिलाओं ने दायर किया है मुकदमा

काशी विश्वनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थान, मां श्रृंगार गौरी, मां गंगा, भगवान हनुमान, भगवान गणेश व नंदी के पूजा-अर्चना के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने 18 फरवरी 2021 को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में वाद दायर किया था। सिविल जज ने 18 मार्च को दाखिल दावा को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया था। ऐसे ही ज्ञानवापी परिसर स्थित मां श्रृंगार गौरी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना, परिसर में स्थित अन्य देवी-देवताओं के विग्रहों को सुरक्षित रखने और इन्हेंं क्षति पहुंचाने से प्रतिवादियों को रोकने की मांग करते हुए 18 अगस्त 2021 को नई दिल्ली निवासिनी राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में वाद दायर किया गया है। इन पक्षकारों ने मौके पर यथास्थिति बरकरार रखने की अदालत से मांग की है। अदालत ने उक्त वाद पर सुनवाई के लिए 24 सितंबर की तिथि निर्धारित कर रखी है। महाराष्ट्र के सुरेश चौहान ने विश्वेश्वरनाथ पर जल चढ़ाने और पूजा-पाठ करने का अधिकार देने की मांग करते हुए सिविल अदालत में याचिका दायर की है।


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