बभनियांव उत्खनन : विशेषज्ञों की टीम ने काशी में गुप्तकालीन शिव मंदिर की कर दी पुष्टि
बभनियांव में उत्खनन के नौवें दिन गुरुवार को विशेषज्ञों की टीम ने गुप्तकालीन शिव मंदिर होने की पुष्टि कर दी।
वाराणसी, जेएनएन। बभनियांव में उत्खनन के नौवें दिन गुरुवार को विशेषज्ञों की टीम ने गुप्तकालीन शिव मंदिर होने की पुष्टि कर दी। खत्ती (ट्रेंच) संख्या एक में जमीन के 145 सेंटीमीटर नीचे बुधवार को ही उत्खनन के दौरान शिवलिंग, गर्भ गृह, प्रवेश द्वार, प्रदक्षिणा पथ व स्तंभ गर्त स्पष्ट हो चुके थे। वहीं आज पांच सेमी नीचे अरघा, मंदिर की प्रणाल भी सामने आ गया। इसे देखते ही गांव की एक महिला झट से माला-फूल ट्रेंच के बाहर चढ़ा दी। गांव के लोग जहां इस मंदिर के पुरावशेष को आस्था से जोड़ रहे हैं, तो बीएचयू के पुराविदों ने इसे गुप्तकाल की संस्कृति से जोड़ा।
चुनार के पत्थरों को तराशकर बना है अरघा
प्रो. अशोक कुमार सिंह का कहना हे कि अरघा व प्रणाल दोनों ही चुनार के पत्थरों से निर्मित हैं। आधुनिक शिव मंदिर के समान ही इस मंदिर का गर्भ गृह दो गुणे दो मीटर का व अरघा एक गुणे एक मीटर के हिस्से में है। बताया कि आरंभिक गुप्तकाल में लोग गंगा के रास्ते चुनार से लाल पत्थर लाते थे और शिल्पी आकार देते थे।
स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण
अरघा व गर्भगृह गुप्तकालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। लगभग 1700 साल बाद शिवलिंग का अरघे में मजबूती से जमा होना आश्चर्यजनक है। प्रो. सिंह मुताबिक यह अरघे के छिद्र में शिवलिंग को मजबूती प्रदान करने के लिए पत्थरों के टुकड़ों को वासर रूप में प्रयोग किया गया है।
अब मंदिर का बाहरी हिस्सा
खत्ती संख्या तीन में लगभग 35 सेमी तक खोदाई कर ह्यूमस के परत निकाल दिया गया है। पुराविदों के मुताबिक इस ओर मंदिर के रास्ते व बाहरी क्षेत्र का प्रमाण मिल सकता है। होली से पहले तक स्पष्ट कर दिया जाएगा। वहीं ट्रेंच दो में उत्खनन नहीं हो सका।
गुप्तकाल की संस्कृति की झलक
भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल कहे जाने वाले गुप्तकाल के दौर में काशी का भी एकमंदिर शुमार हो गया है। इससे पहले प्रदेश में कानपुर व सैदपुर भितरी में गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष मिल चुके हैं। मंदिर गुप्तकाल की संस्कृति को हमेशा याद दिलाता रहेगा।