वाराणसी के कमांडो पवन चौबे के बाबा ने पाक-चीन से जंग में लिया था मोर्चा
वाराणसी के सीआरपीएफ कमांडो पवन चौबे के बाबा स्व. कमला चौबे ने भी सिग्नल कोर रेजीमेंट की तरफ से 1962 में चीन और 1965-1971 में पाक से हुई जंग में मोर्चा लिया था।
वाराणसी, जेएनएन। गोलधमकवा, यह गरथौली ग्राम पंचायत का वही पुरवा (गांव का भाग) है जहां के सीआरपीएफ कमांडो पवन कुमार चौबे ने बुधवार को जान की बाजी लगा श्रीनगर के सोपोर में आतंकियों की गोलियों की बौछार के बीच तीन वर्षीय मासूम की जिंदगी बचाई। पवन कुमार चौबे की माटी और खून भी देशप्रेम से ओतप्रोत है। पवन के बाबा स्व. कमला चौबे ने भी सिग्नल कोर रेजीमेंट की तरफ से 1962 में चीन और 1965-1971 में पाक से हुई जंग में मोर्चा लिया। जबकि उनके भाई सूबेदार स्व. शारदा चौबे 51 बंगाल इंजीनियर यूनिट और सिग्नल कोर से सेवानिवृत्त रामसुरेश चौबे ने 1965-71 की लड़ाई में पाकिस्तान के दांत खट्टे किए। कैंसर पीडि़त रामसुरेश चौबे आज भी उस जंग की दास्तान नहीं भूले हैं। युद्ध का एक-एक वाकया बताते हुए वे नहीं अघाते। इसी परिवार के नागेंद्र प्रसाद चौबे 86 आम्रर्ड रेजीमेंट से सूबेदार पर से रिटायर्ड हैं। इन्होंने भी कश्मीर और नक्सल सहित कई इलाकों में रहकर देश सेवा की। पवन के चाचा हवलदार दुर्गेश चौबे भी सेना के सिग्नल कोर से रिटायर्ड हैं। पवन के परिवार ही नहीं उनके साथ पले-बढ़े व पढ़े बचपन के कई दोस्त भी सेना व अर्धसैनिक बलों में सेवारत हैैं।
स्वतंत्रता सेनानियों का पसंदीदा गांव
वाराणसी जिला मुख्यालय से लगभग तीस किमी दूर गाजीपुर की सीमा पर स्थित गरथौली पंचायत के पुरवा गोलधमकवा ने अंग्रेजी हुकूमत की चूलें भी हिला दी थीं। स्वतंत्रता सेनानियों का पसंदीदा गांव रहा।
ऐसे पड़ा गांव का गोलधमकवा नाम
अंग्रेजी सत्ता की चूलें हिलाने को गांव में गोला-बारूद रखा जाता था। अंग्रेजों ने इसी से गोलधमकवा नाम रखा था। कालांतर में यह पुरवा इसी नाम से ख्यात होता गया।
परिजनों से मिले सीआरपीएफ कमाडेंट, पवन के शौर्य को सराहा
सीआरपीएफ कमांडो पवन कुमार चौबे वर्ष 2016 से कश्मीर में तैनात हैं। परिवार गांव में ही रहता है। मासूम की जान बचाने की घटना के बाद गुरुवार को सीआरपीएफ वाराणसी के कमांडेंट नरेंद्र पाल सिंह पुरवा गोलधमकवा पहुंचे और पवन के शौर्य की प्रशंसा करते हुए परिजनों को बधाई दी। कहा कि पवन ने मानवता की मिसाल कायम की है। इस दौरान पवन की पत्नी शुभांगी, सात वर्षीय पुत्र दिव्यांशु और तीन साल की पुत्री दिव्यांशी मौजूद रहीं। पवन के पिता सुभाष चौबे ने कमांडेंट से घर तक सड़क बनवाने का अनुरोध भी किया।
मस्जिद में छिपे आतंकियों को मारने से ज्यादा जरूरी था मासूम को बचाना : पवन चौबे
जम्मू -कश्मीर की नाका पार्टी में सुबह 8.34 बजे अचानक मस्जिद की दूसरे मंजिल से आतंकियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर हमला बोल दिया। मस्जिद से फायङ्क्षरग का जवाब जवान भी देने लगे। दोनों तरफ से हो रही फायरिंग में वहां के एक स्थानीय नागरिक की मौत हो गई। उसकी लाश जमीन पर पड़ी थी और उसके पास बैठा मासूम उसे उठाने की कोशिश कर रहा था, मगर उसे क्या मालूम कि अब उसका नाना कभी नहीं उठेगा। यह दृश्य देखकर काशी निवासी सीआरपीएफ कमांडो पवन कुमार चौबे के मन में गम व गुस्से का ज्वार उठा। दोनों ओर से जारी फायरिंग के बीच मासूम को रोते हुए देख पवन खुद को रोक नहीं सके। इसके बाद उन्होंने वह कर दिखाया जो वीर और बिरले ही करते हैं।
जांबाज पवन कुमार चौबे ने मासूम की जान बचाने के लिए उसे अपनी ओर आने का इशारा किया। गोलियों की आवाज के चलते कुछ सुनाई नहीं दे रहा था और न ही मासूम कुछ समझ पा रहा था। ऐसे में पवन साथियों को कवर फायङ्क्षरग का इशारा करते हुए उसकी ओर बढ़े। जान की बाजी लगा उसे गोद में लेते हुए एक कोना थाम लिया।
दैनिक जागरण संवाददाता से गुरुवार को मोबाइल पर हुई बातचीत में पवन चौबे ने बताया कि बच्चे को शव के पास रोता व उसे उठाने की कोशिश करता देख अंदर से कलेजा कांप गया। आतंकियों का सामना करने के साथ पहली कोशिश उसे वहां से हटाने की थी। फायरिंग की आवाज सुनकर वह जोर-जोर से रोने के साथ अपने नाना को उठाने की कोशिश कर रहा था। इस विपरीत स्थिति में उसे किसी तरह बचाया जा सका। बच्चे को बचाने में साथियों ने सहयोग किया। उन्होंने कवर फायरिंग न दी होती तो शायद वहां का नजारा और होता।