संत रविदास जयंती उत्सव के लिए सीरगोवर्धनपुर में हाईटेक रसोई और लंगर का इंतजाम
संत रविदास की जयंती पर उनकी जन्म स्थली सीर गोवर्धनपुर में हर वर्ष आयोजित होने वाले उत्सव पर सजने वाली रसोई और लंगर को भक्तों ने हाईटेक बना दिया।
वाराणसी, जेएनएन। संत रविदास की जयंती पर उनकी जन्म स्थली सीर गोवर्धनपुर में हर वर्ष आयोजित होने वाले उत्सव पर सजने वाली रसोई और लंगर को भक्तों ने हाईटेक बना दिया। पहले आटा गूथने और सब्जी काटने वाली मशीन लगाई तो 2016 में रोटी भी मशीन से बनने लगी। यह घंटे भर में हजार रोटी बनाती है। पिछले साल गेहूं पिसने के लिए आधुनिक आटा चक्की लगाई। इससे हर दिन 100 क्विंटल गेंहू की पिसाई होती है। लंगर के लिए सैकड़ो टन जलावन की लकड़ी लगती है। इसकी काट-छांट में बड़ी संख्या में सेवादार लगाने होते थे लेकिन पिछली जयंती से पहले इसके लिए भी मशीन लगा दी गई। इसके अलावा आलू छीलने और सब्जी काटने की मशीन के साथ ही रोटी गरम रखने के लिए बड़े ओवन भी मंगा लिए गए।
दम घुटने वाले धुएं से मिली राहत
पंजाब में लंगर की परंपरा सदियों पुरानी है। यहां लंगर और रसोईघर में काम करने वाले उत्साह के साथ सेवा करते झूमते- गाते उत्सव मनाते हैं। मंदिर प्रबंधन ने सबसे पहले लंगर की रसोई को पक्का दो मंजिला निर्माण कराया लेकिन धुएं से दम घुटता था। ऐसे में ईंट से तीन बड़ी चिमनी बनाई गई जो भट्ठी से निकलने वाले धुएं को गड्ढे के माध्यम से सीधे बाहर ले जाती है। पानी के लिए बड़ी टंकी और बिजली के लिए 125 केवीए का बड़ा जेनरेटर भी लगाया गया है।
सात दिन अटूट लंगर, पांच लाख लोगों के खाने का इंतजाम
श्रीगुरु रविदास जयंती की व्यवस्था देख रहे ट्रस्टी केएल सरोए व मैनेजर निर्मल सिंह ने बताया कि हर वर्ष भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए व्यवस्था को विस्तार दिया जा रहा है। लंगर में प्रात: चाय- नाश्ता, दोपहर में भोजन, तीन बजे चाय- नाश्ता और रात में लंगर छकने का इंतजाम किया जाता है। इसमें खाने के साथ मीठा और नाश्ते में सकरपाला, मठरी व पंजाबी नमकीन भी होता है। हर रोज खाने का मीनू बदल जाता है। सेवादार व लंगर व्यवस्था देख रहे निरंजन दास चीमा ने बताया कि मंदिर की तरफ से इस बार सात दिनों तक अटूट लंगर चलेगा। इसमें पांच लाख से ज्यादा लोगों के भोजन की व्यवस्था की गई है। जयंती के लिए बड़े लंगर की शुरुआत बुधवार से हो गई। हालांकि रसोई की शुरूआत मंगलवार से ही हो गई है। लंगर में देश-विदेश से आने वाले भक्त सेवा देते हैैं। लंगर व रसोई के संसाधन भले हाइटेक हो गए हों लेकिन लंगर छकने की व्यवस्था में प्यार व आदर का संस्कार अभी भी नजर आता है। पंगत में बैठाकर थाली में भोजन कराया जाता है। लंगर हाल में जूता -चप्पल वर्जित है। छोटा-बड़ा हर आदमी पांत में नीचे बैठकर लंगर छकता है। इस बार असमर्थों के लिए टेबल-कुर्सी की भी व्यवस्था की गई है।
साल भर चलता है लंगर
वैसे तो संत रविदास की जन्मस्थली पर साल भर लगातार लंगर चलता है। इसमें दर्शन को आने वाले देश-विदेश व स्थानीय भक्तों के साथ ही बीएचयू के विद्यार्थी भी प्रसाद ग्रहण करते हैैं। ट्रस्टी केएल सरोए ने बताया की प्रतिदिन लंगर में सैकड़ों लोगों का खाना बनता है। गुरु को भोग लगने के बाद ही इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण कराया जाता है।