प्लेटफार्म मिला तो अन्नपूर्णा बनीं, कुछ अलग करने का सपना संजोने वाली आदिवासी छात्राएं Varanasi news
कुछ अलग करने का सपना संजोने वाली आदिवासी छात्राओं का उत्साह सोनभद्र के जंगली क्षेत्र में निराशा में बदल जाता है।
वाराणसी, जेएनएन। कुछ अलग करने का सपना संजोने वाली आदिवासी छात्राओं का उत्साह सोनभद्र के जंगली क्षेत्र में निराशा में बदल जाता था। मगर, जब आइआइवीआर ने इन्हें प्लेटफार्म दिया तो इनकी उम्मीदों को पंख लग गए। सोनभद्र में जंगल के बीच स्थित एक गांव पड़रक्ष और उसके टोले भालुकुदर की बीस छात्राएं अब अन्नपूर्णा बनकर सफलता की गाथा लिख रही हैं। छात्राओं को गर्मी की छुट्टी में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में बीज और खेती का प्रशिक्षण दिया गया। संस्थान के बीज से छात्राओं ने सब्जी की खेती की। बिक्री से पैसे मिले तो उत्साह बढ़ा। छात्राएं अब सब्जी की नर्सरी तैयार करने व व्यावसायिक खेती में जुटी हैं।
- गर्मी की छुट्टी में शुरू हुआ सफर गर्मी की छुट्टी में छात्राओं ने खेल-खेल में ही प्रशिक्षण लेकर कार्य शुरू किया, जो अब व्यावसायिक खेती का रूप ले चुका है। संस्थान की तरफ से समय-समय पर छात्राओं को प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्नत सब्जी के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
- उद्यमिता को मिल रहा बढ़ावा संस्थान के निदेशक डा. जगदीश सिंह के निर्देशन में अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में अनुसूचित जाति उप-योजना के तहत टीम जाकर आय सृजन योजनाओं को जमीन पर उतारने में जुटी है। गाव की छात्राओं के इस समूह को बाकायदा ट्रेनिंग भी दी गई है।
- सफलता की लिख रहीं गाथा छात्रा भगवंती कुमारी, फुलवंती, सुनीता का कहना है कि वे परंपरागत नर्सरी की बजाय नेट हाउस के अंदर प्रोट्रेज में वर्मी कंपोस्ट, कोकोपिट, वर्मीकुलाइट, परलाइट, आदि का उपयोग कर मिर्च, बैगन, टमाटर जैसी सब्जियों की नर्सरी तैयार कर रही हैं। भगवंती ने बताया कि अब व्यापक पैमाने पर खेती शुरू की है। संस्थान व छात्राओं के बीच कड़ी बने इस गाव के ही रामरक्षा बताते हैं कि समूह ने गोभी की वैज्ञानिक तरीके से गुणवत्तापूर्ण नर्सरी तैयार की है।
- हाथों-हाथ बिक जा रही नर्सरी संस्थान के वैज्ञानिक डा. शुभादीप राय, डा. इंदीवर प्रसाद, डा. एएन त्रिपाठी, डा. नीरज सिंह व डा. एम सिंह बताते हैं कि छात्राओं द्वारा तैयार पौधे मजबूत, रोगमुक्त व एक समान हैं। इससे आमदनी भी बढ़ रही है। रोजगार भी सृजित हो रहा है।