आदिवासी नृत्य के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का सोनभद्र में होगा स्वागत, छात्रावास व स्कूल भवन का करेंगे लोकार्पण
सोनभद्र बभनी ब्लाक के चकचपकी स्थित सेवा समर्पण संस्थान में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का आगमन प्रस्तावित है। वे यहां आयोजित वनवासी समागम को संबोधित करने के साथ ही छात्रावास व विद्यालय भवन का लोकार्पण करेंगे। उनकी आगवानी करीब 1000 आदिवासी कलाकारों द्वारा करायी जाएगी।
सोनभद्र, जेएनएन। बभनी ब्लाक के चकचपकी स्थित सेवा समर्पण संस्थान में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का आगमन प्रस्तावित है। वे यहां आयोजित वनवासी समागम को संबोधित करने के साथ ही छात्रावास व विद्यालय भवन का लोकार्पण करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इस बार जनपद के 20 हजार आदिवासी समागम में उपस्थित रहेंगे। उनके बैठने के लिए दो लाख स्क्वायर फीट में टेंट लगाए जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण को देखते हुए आदिवासियों के लिए लगने वाली कुर्सियों को उचित दूरी पर रखा जाएगा, ताकि किसी तरह की समस्या न हो। इसके अलावा इस बार पड़ोसी राज्यों के आदिवसियों को इस कार्यक्रम से दूर रखा जाएगा, इसके पीछे मूल करण कोरोना संक्रमण है।
कार्यक्रम की सफलता के लिए पुलिस-प्रशासन से लेकर संस्थान के लोग भी पूरे मनोयोग से लगे हैं। उनकी आगवानी करीब 1000 आदिवासी कलाकारों द्वारा करायी जाएगी। कलाकार महामहिम के समक्ष ही अपनी लोक संस्कृति और कला का प्रदर्शन करेंगे। इसके लिए करमा, शैला, डोमकच नृत्य का अभ्यास भी शुरू कर दिया है। कारीडाड़ स्थित सेवा समर्पण संस्था परिसर में भी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यहां हेलीपैड पिछले वर्ष के प्रस्तावित कार्यक्रम के दौरान ही बनाए गए थे, जिसे पुन: नवीनीकृत किया जा रहा है। राष्ट्रपति के साथ ही राज्यपाल के भी आने की पूरी संभावना है। कार्यक्रम में सोनभद्र के बभनी व म्योरपुर ब्लाक के करीब 80 गांवों के आदिवासी जुटेंगे। आश्रम के सह संगठनमंत्री आनंद ने बताया कि राष्ट्रपति के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने की तैयारी चल रही है। यहां आगमन के समय ही म्योरपुर व बभनी के आदिवासी कलाकार अपने कला का कौशल दिलखाएंगे। उन्होंने बताया कि करमा नृत्य आदिवासी सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस लिए इसे पहले प्रस्तुत कराया जाएगा।
क्या होता है करमा नृत्य
सह संगठनमंत्री आनंद के मुताबिक वनवासी समाज का असली त्योहार करमा माना जाता है। ङ्क्षहदी कैलेंडर के अनुसार भादौ माह के एकादशी के दिन यह त्योहार मनाया जाता है। उसके बाद पूरे वर्ष आदिवासी इसे अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। बताया कि कर्म देवता की पूजा का इसमें खास महत्व है। जंगलों में एक करम का पेड़ मिलता है। वनवासी एकादशी से दो दिन पहले उस पेड़ के पास पहुंचते हैं और चावल, हल्दी, अगरबत्ती समर्पित करके निमंत्रण देते हैं। उसके बाद परिवार के लोग व्रत रखकर एकादशी की शाम को करम के पेड़ की टहनी तोड़कर अपने घर लाते हैं। उसकी विधिवत पूजा करते हैं। अगले दिन जल में प्रवाहित करते हैं। पूजन के समय महिलाएं, पुरूष एक साथ समृत नृत्य करते हैं। वहीं करमा नृत्य होता है।