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बनारस की आबोहवा देश में बेहद चिंताजनक, धूल और वाहनों से निकलने वाला धुंआ बना सबसे बड़ा कारण

हालत ऐसे हो गए हैं कि पिछले वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में वाराणसी में बढ़ते वायु प्रदूषण पर चिंता जताई थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 23 Oct 2019 10:27 AM (IST)Updated: Wed, 23 Oct 2019 06:15 PM (IST)
बनारस की आबोहवा देश में बेहद चिंताजनक, धूल और वाहनों से निकलने वाला धुंआ बना सबसे बड़ा कारण
बनारस की आबोहवा देश में बेहद चिंताजनक, धूल और वाहनों से निकलने वाला धुंआ बना सबसे बड़ा कारण

वाराणसी, जेएनएन। दुनिया के मानचित्र पर बनारस की पहचान आध्यामिक शहर के रूप में है। यहां के घाट व मंदिर देखने दुनियाभर से लोग आते हैं। हालांकि अब इसकी पहचान वायु प्रदूषण से पीडि़त शहर के रूप में हो रही है। हालत ऐसे हो गए हैं कि पिछले वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में वाराणसी में बढ़ते वायु प्रदूषण पर चिंता जताई थी। 

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मंगलवार को एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार वाराणसी देश का सबसे वायु प्रदूषित शहर था। यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 276, जबकि लखनऊ का 269 था। वाराणसी की प्रदूषित और जहरीली होती हवा से निबटने के लिए एक विशेष योजना बनानी होगी तभी कुछ भला होगा। पर्यावरण क्षेत्र में सालों से काम कर रही एकता शेखर का कहना है कि हम लोग वाराणसी के लिए योजना बनाते हैं लेकिन अनपरा, बीजपुर और शक्तिनगर में थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले धुंआ को वाराणसी और आस-पास के शहरों में फैलने से रोकने के लिए क्या होना चाहिए इस पर नहीं सोचते हैं। जब तक समग्र योजना नहीं बनेगी तब तक परिणाम सामने नहीं आएगा। 

वाराणसी में पिछले दो साल के दौरान एकत्र पीएम-2.5 और पीएम-10 के आंकड़े बताते हैं कि वायु की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो रहा है। बल्कि यहां की हवा अब भी 'खराब' और 'बहुत खराब' की श्रेणी में है।

वाराणसी में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को रोकने के लिए इससे जुड़े सिद्धांतों को सख्ती से अपनाने और उनकी प्रभावी निगरानी करने के लिए कार्य होना चाहिए। 

सुंदरीकरण के साथ प्रदूषण नियंत्रण पर भी हो ध्यान 

एकता शेखर कहती हैं कि सरकार ने वाराणसी के सुंदरीकरण के लिए अच्छा काम किया है, अब वैसे ही प्रदूषण को रोकने के लिए कार्य करना चाहिए। कम्युनिकेशन काउंसिल ने 2016 में वाराणसी की वायु प्रदूषण पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट- वाराणसी चोक जारी की थी जिसमें प्रदूषण के स्तर के साथ-साथ स्थानीय लोगों व चिकित्सा विशेषज्ञों से स्वास्थ्य पर पडऩे वाले इसके असर की चर्चा की गई है। इस रिपोर्ट के बाद आरटीआइ दाखिल कर पूछा कि समस्या का समाधान करने के लिए 2016 के बाद से क्या किया है। इस पड़ताल को लेट मी ब्रीद की ओर से जारी किया गया है।

वायु प्रदूषण के अत्यंत खराब दौर से निपटने के लिए एक निगरानी और चेतावनी केंद्र की स्थापना करने के साथ हवा की गुणवत्ता खराब होने के लिए सभी तरह के सरकारी व स्थानीय प्राधिकरणों की जवाबदेही तय होना आवश्यक है।

वायु प्रदूषण से फेफड़े हो रहे कमजोर

बीएचयू के डॉक्टर पिछले कई वर्ष से कह रहे कि वायु प्रदूषण को हम लोगों ने ही बढ़ावा दिया है। कंक्रीट के जंगल तो बढ़ते जा रहे हैं लेकिन हरियाली कम होती जा रही है। इसके अलावा बनारस में कई सालों से विकास के नाम पर कई काम हो रहे हैं, ऐसे में निर्माण सामग्री से उडऩे वाले कुछ ऐसे कण होते हैं जो फेफड़ों को कमजोर करते हैं। इसके अलावा हार्ट अटैक जैसी अन्य घातक बीमारियों को बढ़ावा भी मिलता है। 

वाहनों की हो कड़ाई से जांच 

बनारस में रोज लाखों वाहन दौड़ते हैं। हजारों वाहन प्रतिदिन वाहर से आते हैं। इनसे निकलने वाला धुंआ मनुष्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वाहनों की संख्या नियंत्रित हो या किसी दिन फला नंबर के वाहन चलेंगे और किस दिन ये वाहन चलेंगे, उस पर भी ध्यान देना चाहिए। ऐसे वाहनों को सड़कों से चलने से रोक देना चाहिए जो वायु प्रदूषण को किसी तरह से बढ़ावा देते हैं। 

कूड़े के जलाने पर हो जेल 

आज भी कई स्थानों पर कर्मचारियों का कम होने का रोना रोकर कर्मचारी कूड़े को जला देते हैं। कूड़ा की आग से निकलने वाला धुआं बहुत नुकसानदायक होता है क्योंकि यह बहुत ऊंचाई तक नहीं जाता है। सर्दी के मौसम में कोहरे के कारण धुआं और नीचे रहता है जो हर तरफ से नुकसान पहुंचता है। पिछले नगर आयुक्त ने आदेश दिया था कि कूड़ा जलाने वाले को जेल होनी चाहिए लेकिन आज तक कूड़ा चलाने पर किसी को जेल नहीं हुई है। 

समय से हो पानी का छिड़काव 

नगर में जहां जहां सड़कों या आस-पास निर्माण कार्य हो रहा है, वहां पर समय-समय पर पानी का छिड़काव होना जरूरी है। इससे धूल के कण नहीं उड़ेगे। इसके लिए जिन स्थानों पर निर्माण सामग्री रखी जाती है वह कक्ष भी ऐसा हो कि वहां से धूल बाहर न निकले। इमारतों के निर्माणधीन साइटों पर मोटा कपड़ा लगाया जाए ताकि वहां से धूल के कण न उड़े। 

विभागों में समन्वय हो 

प्रदूषण चाहे वायु हो, जल हो या ध्वनि, इस पर तभी लगाम कसी जा सकेगी कि जब केंद्र और राज्य सरकार के विभाग आपसी तालमेल से योजना बना कर कार्य करे। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह का कहना है कि 29 सरकारी विभाग की समिति इसके लिए गठित हुई है। सभी विभागों से यह कहा गया है कि वह अपने-अपने विभाग की ओर से योजनाएं बनाए कि वह कैसे प्रदूषण को रोकने में अपना सहयोग कर सकते हैं। 

डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाएं 

जनपद के ऐसे स्थानों पर इस तरह के डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाए जो यह बताए कि उस समय उस स्थान पर वायु प्रदूषण की स्थिति क्या है। ऐसे में आम जनता जब यह देखेगी कि प्रदूषण की मात्रा इतनी है तो वह भी सचेत होगा। बिना जनसहभागिता के प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं लग सकता है। 

वैकल्पिक साधनों पर अधिक जोर 

पेट्रोल और डीजल चलित वाहनों के साथ पर बैटरी से चलने वाले और इलेक्ट्रिक वाहनों के संचालन पर जोर दिया जाना चाहिए। वैकल्पिक ऊर्जा से जितने अधिक वाहन संचालित होंगे उनका प्रदूषण कम होगा। इसके लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को इस्तेमाल करने पर अधिक जोर देना चाहिए। 


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