वाराणसी में लक्ष चंडी महायज्ञ में कोविड गाइड लाइन के अनुसार ब्राह्मणों की संख्या 500 से 280 हुई
सुबह यथेष्ठ पूजन के उपरांत आचार्यों ने संकल्पित दुर्गाशप्तशती का पाठ आरंभ किया। इस दौरान आस्थावानों के बीच आयोजन की चर्चा भी खूब रही। आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए आयोजकों की ओर से आयोजन का प्रचार प्रसार भी खूब किया गया था।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। काशी के केदार खण्ड स्थित पौराणिक द्वारिकाधीश मंदिर में विराजमान भगवान के प्रतिरूप के समक्ष बहुप्रतीक्षित लक्ष चंडी महायज्ञ का आरंभ कोरोना महामारी की बंदिशों के बीच बुधवार को हो गया। सुबह यथेष्ठ पूजन के उपरांत आचार्यों ने संकल्पित दुर्गाशप्तशती का पाठ आरंभ किया। इस दौरान आस्थावानों के बीच आयोजन की चर्चा भी खूब रही। आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए आयोजकों की ओर से आयोजन का प्रचार प्रसार भी खूब किया गया था।
संकुलधारा पोखरे के मध्य जेटी पर बने पारायण स्थल की शोभा देखते बनती थी। जब गेरुवा वस्त्रधारी ब्राह्मण मध्य पोखरे में बैठकर पाठ का वाचन कर रहे थे ऐसा आभास हो रहा था कि हमेशा शैवाल युक्त पानी से भरा पोखरा वैदिक रीतियों के बीच विहंगम सरीखा हो गया हो। काशी के धार्मिक इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी पौराणिक कुंड या पोखरे के बीचो बीच पराम्बा देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए दुर्गाशप्त शती का पारायण हो रहा हो। सामान्यतौर पर इस पवित्र धार्मिक पुस्तक के सात सौ मंत्रों का पाठ शारदीय और वासन्तिक नवरात्रों में घरों व मंदिरों में किया जाता है।
महामण्डलेश्वर प्रखर जी ने कहा कि मोक्ष भूमि काशी नगरी का केदारखण्ड अत्यंत पवित्र माना जाता है। सनातन धारणा है कि काशी के इस खंड में मृत्यु होने पर मृतक की आत्मा को भैरवी यातना नहीं झेलनी पड़ती। वह सीधे मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। यहां यज्ञ करने का प्रयोजन यही है कि संकल्प निश्चित पूरा होगा। मेरा संकल्प है कि भारत भ्र्ष्टाचार मुक्त हो और हिन्दू राष्ट्र बने। भारत फिर से विश्वगुरु बने और विश्व से कोरोना महामारी का विनाश हो। शिष्य स्वामी पूर्णानन्द पुरी ने बताया कि कोविड गाइड लाइन के कारण पारायण करने वाले ब्राह्मणों की संख्या पांच सौ से घटाकर 280 कर दी गयी है। कहा कि या तो यह संख्या बढ़ाई जाएगी या यज्ञ का दिन बढ़ा दिया जाएगा जिससे लक्ष्य पूरा हो सके।