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500 कराेड़ का रेडीमेड कपड़ा डंप, वाराणसी में नाइट कर्फ्यू में लगे प्रतिबंधों ने कारोबार को किया प्रभावित

कोरोना बंदिशों के चलते अकेले बनारस के बाजार में लगभग 500 करोड़ के रेडीमेड कपड़े स्टोर में रुके पड़े हैं। रेडीमेड कपड़े के कुल कारोबार का 80 फीसद रेडीमेड कपड़ा कोलकाता से आता है। बाकी में मुंबई कानपुर दिल्ली और लुधियाना जैसे शहर शामिल हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 08:05 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 08:05 AM (IST)
500 कराेड़ का रेडीमेड कपड़ा डंप, वाराणसी में नाइट कर्फ्यू में लगे प्रतिबंधों ने कारोबार को किया प्रभावित
कोरोना महामारी के हर चरण ने रेडीमेड कारोबार को प्रभावित किया।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : कोरोना महामारी के हर चरण ने रेडीमेड कारोबार को प्रभावित किया। वर्तमान में भी यह कारोबार संकट के दौर से गुजर रहा है। कारोबारी बताते हैं कि कोरोना बंदिशों के चलते अकेले बनारस के बाजार में लगभग 500 करोड़ के रेडीमेड कपड़े स्टोर में रुके पड़े हैं। दोहरी मार जीएसटी की वसूली है। बहरहाल, कोविड नियमों के दिशानिर्देश में लोगों के घरों से बाहर न निकलने, होटलों में संख्या सीमा नियंत्रण आदि के चलते हाल के दिनों में रेडीमेड कपड़ा कारोबार किसी चमत्कार की आस में है।

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कोलकाता के रेडीमेड पर निर्भर है बनारस

वाराणसी नगर वस्त्र व्यवसाई संघ के अध्यक्ष ऋषि केसरी बताते हैं कि शहर में 1500 से भी अधिक रेडीमेड की दुकानें हैं। इसमें छोटी दुकानें शामिल नहीं हैं। कुल कारोबार का 80 फीसद रेडीमेड कपड़ा कोलकाता से आता है। बाकी में मुंबई, कानपुर, दिल्ली और लुधियाना जैसे शहर शामिल हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर रोज पांच से सात करोड़ के रेडीमेड कपड़े अन्य शहरों से मंगाए जाते हैं। कोविड के चलते मंदी के हालात हो गए हैं। स्टोर में 500 करोड़ के करीब कपड़े रुके हैं। इसमें कुर्ता-पायजामा, धोती-कुर्ता, घाघरा, शेरवानी, पेंट-शर्ट टीशर्ट, जींस, ट्राउजर, पजामा, जर्सी, कोट, जैकेट, बनियान, अंडरवियर, ट्रैकसूट, नाइटी, दुप्पटा, फ्रॉक, निक्कर, लुंगी, पगड़ी, साफा, शाल, टोपी, ओवरकोट, स्कर्ट आदि एक हजार से अधिक प्रकार के सामान शामिल हैं।

चीन का भी रेडीमेड में था कभी दखल 

बनारस में कोलकाता से सबसे अधिक होजरी आइटम आते हैं। वहीं मुंबई से महिला-पुरुष के विभिन्न प्रकार के कपड़े मंगाए जाते हैं। जबकि लुधियाना से ऊनी वस्त्रों की मांग ज्यादा रहती है। इसकी मांग प्राय: मौसमी है। दूसरी ओर दिल्ली से ब्रांडेड शर्ट, जिंस और अन्य रडीमेड कपड़े मंगाए जाते हैं। वहीं कभी अधिक दखल रखने वाला चीन बनारस के रेडीमेड बाजार में दो फीसद तक सिमट गया है। जानकारों की माने तो चीन से टीशर्ट और लोवर जैसे कपड़े ज्यादा आते हैं। इसका प्रमुख कारण सस्ता होना है। अब काफी कम हो गया है। बनारस में दशाश्वमेध, लक्सा, गुरुबाग, गोदौलिया जैसे रेडीमेड के मुख्य बाजार हैं।

अकेले बनारस में 50 से 60 हजार लोगों को रोजगार

बनारस का रेडीमेड कारोबार में पूर्वांचल में बादशाहत है। इतने बड़े बाजार में 50 से 60 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है। व्यवसाइयों का मानना है कि 1000 रुपये के सामान पर जीएसटी फ्री कर देगी चाहिए। जीएसटी कैश न ली जाए। रेडीमेड कारोबार से जुड़े विनय कुमार गुप्ता बताते हैं कि बाजार में ग्राहक नहीं दिख रहे हैं। अब जाड़े के कपड़े की बिक्री भी कम हो गई है। बिक्री कम होने से कपड़े डंप हो रहे हैं। लोगाें के पास पैसा नहीं है। स्थितियां सामान्य हों और रोजगार बढ़े जिससे मुद्रा का चलन ज्यादा होने से बिक्री बढ़ेगी। इन दिनों मध्यमवर्ग खासा प्रभावित हो रहा है।

एक नजर बनारस का रेडीमेड बाजार (अनुमानित)

दुकानें - 1000 से 1500

रोजगार - 50 से 60 हजार

कारोबार - पांच करोड़ प्रतिदिन

पड़ा डंप - 500 करोड़


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