आपातकाल के 45 साल : इमरजेंसी में देश के कोने-कोने में छा गए थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण
आपातकाल की घोषणा पर दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में एक विशाल रैली हुई थी।
बलिया [लवकुश सिंह]। हर साल की तरह इस बार भी 25 जून यानी आज आपातकाल की बरसी पर उस दौर के तमाम किस्से याद किए जाएंगे। उस 45 वर्ष पुराने शर्मनाक अध्याय के मनहूस कालखंड को याद किया जाएगा। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता की सलामती के लिए आपातकाल लागू कर समूचे देश को कैदखाने में तब्दील कर दिया था। सेंसरशिप लागू कर अखबारों की आजादी का गला घोंट दिया गया था। संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका आदि सभी संवैधानिक संस्थाओं को सरकार की भाषा बोलने के लिए विवश कर दिया था। तब देश में जुल्म का ऐसा दौर चला था कि पूरे देशवासी उबल उठे थे। 25-26 जून की रात 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया था।
आपातकाल की घोषणा की, उस रात से पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में एक विशाल रैली हुई थी। वह तारीख थी 25 जून 1975 और इसी रैली में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ललकारा था। जिसके बाद सारा देश केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जेपी के साथ चल पड़ा था। हर तरफ जेपी का नाम गूंज रहा था।
आपातकाल में जेल से ही दी बीए की परीक्षा
आपातकाल के समय बागी धरती पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर दो ही नाम थे। उनकी एक आवाज पर पूरे जनपद के युवा किसी भी आग में कूदने को बेताब थे। उन्हीं युवाओं में से एक नाम है चंद्रशेखर सिंह। वर्तमान में वह जिला कोआपरेटिव बैंक के चेयरमैन हैं, तब के समय में वह छात्र नेता थे। आपातकाल की बरसी पर उनके अंदर की वह तमाम यादें जीवित हो उठती हैं। बातचीत के दौरान उन्होंने तब की तानाशाही पर प्रकाश डालते हुआ कहा कि 1974 में मै वहां के अमर शहीद भगत सिंह इंटर कालेज का छात्र था, तब उक्त विद्यालय का नाम..के जार्ज सिलवर जुबली इंटर कालेज था। उसी दरम्यान रसड़ा चीनी मिल का उद्घाटन करने इंदिरा गांधी पहुंची थी। उस दिन हम छात्रों ने उनकी नीतियों के खिलाफ उन्हें काला झंडा दिखाया था। उसी आंदोलन के दौरान मै इंटर पास कर बीए प्रथम वर्ष में पहुंचा, लेकिन मन के जेपी के संपूर्ण क्रांति की हलचल चल रही थी।
तभी 25-26 जून की रात 1975 को इमरजेंसी लगा और मुझे और कुछ साथियों को 26 जुलाई 1975 को आंदोलनकारी के नाम पर गिरफ्तार कर लिया गया। तब रसड़ा में प्यारे लाल चौराहा से सड़क पर पीटते हुए पुलिस थाने ले गई, मेरी हालत अधमरे जैसी हो चली थी। उसके बाद मुझे बलिया जेल भेज दिया गया। उधर मेरे बीए प्रथम वर्ष की परीक्षा थी, मैंने जेल प्रशासन को अर्जी दिया कि मुझे परीक्षा देने के लिए छोड़ा जाए, लेकिन मुझे रिहा करने के बजाय जेल से ही परीक्षा देने की व्यवस्था की गई। यहां कुछ दिन रखने के बाद मुझे इलाहाबाद अब प्रयागराज के नैनी जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। हमें अब कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। जब इमरजेंसी का तेवर कुछ कम हुआ तो 14 जनवरी 1977 को मुझे बलिया जेल लाया गया और यहीं से मेरी रिहाई हुई। इस तरह आपातकाल में कुल मिलाकर मै 19 माह जेल में रहा। जब-जब यह दिन आता है सभी जेपी सेनानियों के जेहन में देश के नायक जेपी ङ्क्षजदा हो उठते हैं। उस दरम्यान के बहुत से लोग आज विभिन्न दलों में हैं, लेकिन जेपी जिस सोच के साथ सत्ता परिवर्तन का शंखनाद किए मुझे लगता है..वह सपना आज भी अधूरा है।
धर्मवीर भारती ने तब लिखी थी मुनादी
खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का...हुकुम शहर कोतवाल का... हर खासो-आम को आगाह किया जाता है...कि खबरदार रहें...और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से...कुंडी चढा़कर बंद कर लें...गिरा ले खिड़कियों के परदे...और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजे...क्योंकि...एक बहत्तर बरस का बुढ़ा आदमी अपनी कांपती कमजोर आवाज में...सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है। धर्मवीर भारती ने यह मुनादी तब लिखी थी जब देश में 1974 में शुरू छात्र आंदोलन लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में संपूर्ण क्रांति आंदोलन बन गया था। जेपी आंदोलन व उनके जीवन से वाकिफ लोग धर्मवीर भारती की इन पंक्तियों को और भी बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
बकुल्हां में उखाड़ फेंकी थी रेल पटरियां
जेपी की उस ललकार के बाद बागी धरती बलिया में भी हर तरफ आंदोलन की आग जलने लगी थी। जेपी के गांव के निवासी अजब नारायण सिंह, श्रीराम यादव, ताड़केश्वर सिंह, टीपन सिंह आदि बताते हैं कि तब पुलिस की यातनाओं से सभी के रूह कांप जाते थे। बताया कि तब के समय में गांव के लोगों ने बकुल्हां में रेल की पटरी तक उखाड़ दिया था। उसी आंदोलन के दरम्यान जेपी और चंद्रशेखर ने बलिया की सभा के बाद सिताबदियारा में विशाल सभा को संयुक्त रूप से संबोधित किया था। उसके बाद तो छात्र कुछ भी करने पर उतारू हो चले थे।