इस बार 15 अगस्त को सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी नागपंचमी
सनातन धर्म की अद्भुत परंपराओं वाले देश भारत में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर नाग पूजन का विधान है।
प्रमोद यादव, वाराणसी : सनातन धर्म की अद्भुत परंपराओं वाले देश भारत में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर नाग पूजन का विधान है। इसलिए इस तिथि को नाग पंचमी कहते हैं। नाग पंचमी इस बार 15 अगस्त को मनाई जाएगी। पंचमी तिथि 15 अगस्त की सुबह 7.24 बजे लग रही है जो 16 अगस्त को सुबह 6.08 बजे तक रहेगी। इस अवधि में हस्त नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग खास होगा। एक पूजन से 12 पूजा का लाभ
शास्त्र अनुसार सावन शुक्ल पंचमी को घर के दरवाजे के दोनों ओर गोबर से पांच फणों वाले नाग की मूर्ति बना कर या फोटो चस्पा कर पूजन करना चाहिए। इसमें पांच फण वाले नाग देवता का अत्यधिक महत्व होता है। इनके साथ ही बारह नागों यथा अनंत, वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, करकोटक, उच्चतर, धृतराष्ट्र, संघपाल, कालिय, तक्षक, पिंगल आदि का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। दूध -लावा-खीर आदि अर्पित करना चाहिए।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार ¨हदी के बारहों मास की शुक्ल पंचमी को एक नाग से पूजन का विधान होता है लेकिन नाग पंचमी को विधिवत नाग पूजन करने से हर मास की पंचमी पर पूजन का फल एकमुश्त प्राप्त हो जाता है। नाग पंचमी पर नाग पूजन से सर्प भय नहीं रहता। इस दिन धरती नहीं खोदना नहीं चाहिए। महाभारत काल की परंपरा
पौराणिक दृष्टि से नाग पूजा का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। कथा के अनुसार राजा परीक्षित एक बार शिकार के लिए निकले और समीक ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। ऋषि तपस्या में लीन थे। परीक्षित ने जल मांगा, जवाब न मिलने पर उन्होंने मरे हुए सर्प को ऋषि के गले में डाल दिया। कुछ क्षण बाद समीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि आए और यह सब देखा तो परीक्षित को श्राप दे दिया कि आज के सातवें दिन तक्षक के डंसने पर परीक्षित की मौत होगी। अंततोगत्वा परीक्षित की सर्पदंश से मौत हो गई। इस पर परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने पृथ्वी को सर्पहीन करने का प्रण लेते हुए नाग यज्ञ किया। इसके प्रभाव से सभी तरह के नाग यज्ञ कुंड में गिरने लगे। सर्पो की प्रार्थना पर जनमेजय ने यज्ञ को रोका, वह तिथि सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। उसी समय से इस तिथि पर नाग पंचमी मनाने की परंपरा चली आ रही है।