रात भर रौतापुर में दफन शव तलाशते रहे अफसर
संवाद सहयोगी शुक्लागंज गंगाघाट कोतवाली क्षेत्र के रौतापुर में गंगा किनारे श्मशान घाट पर
संवाद सहयोगी, शुक्लागंज : गंगाघाट कोतवाली क्षेत्र के रौतापुर में गंगा किनारे श्मशान घाट पर बुधवार देर रात 11 बजे से एक बजे तक एडीएम राकेश सिंह, सिटी मजिस्ट्रेट, एसडीएम और गंगाघाट कोतवाल रौतापुर घाट पर दफन शवों को तलाशते रहे। अधिकारियों ने शव दफनाने वाले स्थल का मुआयना कर कानूनगो कुंजबिहारी व लेखपाल को सफाई कराने के निर्देश दिए। वहीं, घाट के पंडों से अधिक से अधिक शवों का दाह संस्कार कराए जाने को कहा। परंपरागत तरीके से जो शव दफनाने के लिए पहुंचे, उन्हें गहरे गड्ढे खोदकर दफन कराने के निर्देश दिए। वहीं दूसरी और बालू घाट व जाजमऊ में भी डेढ़ माह के अंतराल में करीब सौ से अधिक शव दफन कराए गए हैं।
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औसतन आठ से 10 शवों का रोज अंतिम संस्कार
रौतापुर में पंडा विष्णु, पप्पन, करुणाशंकर व गोविद आदि ने बताया कि रोजाना कम से कम आठ से 10 शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है। इसमें लगभग 50 फीसद शव दफन कराए गए व 50 फीसद शवों का दाह संस्कार कराया गया।
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सस्ते के चक्कर में दफनाते शव
पंडों के मुताबिक, लकड़ी से दाह संस्कार कराने में प्रति शव के हिसाब से सात मन लकड़ी लगती है, जिसका लगभग दो हजार रुपये का खर्च आता है। शव को दफन कराकर अंतिम संस्कार करने में महज पांच सौ रुपये ही खर्च होते हैं। इस कारण से ज्यादातर लोग शवों को दफन कराकर चले जाते हैं, जिनके यज्ञोपवीत व विवाह नहीं होते हैं या फिर बच्चों के शवों को दफन ही कराया जाता है।
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मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए घर से देते पर्ची
रौतापुर घाट के पंडों ने बताया कि अंतिम संस्कार श्मशान घाट पर कराने के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए वह लोग घरों से पर्ची देते हैं। उनका कहना है कि जिन लोगों के अंतिम संस्कार होते हैं। उन्हें वापस जाते समय वह लोग अपने घरों से पर्ची देते हैं। इससे उनके मृत्यु प्रमाण पत्र बनाए जा सकें।
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36 गांवों से अंतिम संस्कार कराने आते लोग
पंडों का कहना है कि रौतापुर में गंगा किनारे अंतिम संस्कार कराने के लिए फत्तेपुर, हाजीपुर, अगेहरा, पिपरी, अतरी, बनी, पिडोखा, शंकरपुर, देवारा, बेहटा, राजेपुर, पतारी, रौतापुर, सेहुरा, सथरा, सिकंदरपुर सरोसी, करोवन, बसधना, रुस्तमपुर, सिलौला समेत लगभग तीन दर्जन से अधिक गांवों के लोग यहां पहुंचते हैं। इसके अलावा दूर दराज से भी शव यहां पर अंतिम संस्कार के लिए आते हैं।
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रौतापुर के आसपास कई ऐसे गांव हैं, जहां कबीर पंथियों की संख्या अधिक है। उनके यहां शवों को दफन कराने की परंपरा है। इसके अलावा बच्चे, जिनके यज्ञोपवीत व विवाह नहीं हुए हैं या फिर जिनके पास लकड़ी से दाह संस्कार कराने के लिए रुपये नहीं हैं, उनके शव दफन कराए गए हैं। पंडों व कर्मकांड कराने वालों को निर्देश दिए गए हैं कि जिन लोगों के पास लकड़ी से दाह संस्कार कराने की व्यवस्था नहीं है, वह लोग शुक्लागंज में चालू विद्युत शवदाह में निश्शुल्क अंतिम संस्कार करा सकते हैं।
सत्यप्रिय, एसडीएम सदर