अदालत से दोषमुक्त होने के बावजूद चार साल तक जेल में बंद रहा कैदी, सकते में अधिकारी
अदालत की ओर दोष मुक्त किए जाने के बावजूद एक कैदी चार साल तक जेल में ही बंद रहा।
सुलतानपुर, जेएनएन। इसे अंधेरगर्दी कहिए या फिर अफसरों की लापरवाही....अदालत की ओर दोष मुक्त किए जाने के बावजूद एक कैदी चार साल तक जेल में ही बंद रहा। दरअसल, अदालत के फैसले के बाद रिहाई का आदेश जेल तक पहुंचने में चार साल लग गए। नतीजतन कैदी को चार वर्ष अकारण जेल में रहना पड़ा। हालांकि उस पर कई अन्य मुकदमे भी चल रहे थे। मामला खुलने पर न्यायालय एवं जेल प्रशासन के अधिकारी भी सकते में आ गए। बहरहाल अदालत में लंबी जद्दोजहद के बाद शनिवार को आरोपित जेल से रिहा हो सका
मामला 2011 का है। जेल में बंद अनंत कुमार सिंह व बृजेश सिंह पर जरई गांव निवासी राजेश पाठक को जान से मारने की धमकी दिए जाने का आरोप था। पुलिस द्वारा सुनवाई नहीं होने पर पाठक ने सीधे न्यायालय में परिवाद दायर कर दिया। मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट चतुर्थ विजय कुमार विश्वकर्मा की अदालत में पहुंचा। मुकदमे में सुनवाई पूरी होने के बाद साक्ष्यों के अभाव में दोनों आरोपित को न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया। न्यायालय ने रिहाई का आदेश जेल प्रशासन को नहीं भेजा।
बृजेश सिंह अन्य मामले में लगातार पेशी पर आते रहे। दोषमुक्त मुकदमे में तलबी आदेश बंद हो गई और यह स्थिति चार वर्षों तक चलती रही। न्यायालय और न ही जेल प्रशासन ने इसकी जांच पड़ताल की। इसी बीच बृजेश को अन्य मुकदमों में जमानत मिल गई। रिहाई आदेश जब जेल में पहुंचा तो चार वर्ष पूर्व दोषमुक्त वाले मुकदमे की रिहाई का आदेश ढूंढ़ा जाने लगा जो नहीं मिला। पीड़ित ने न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर कारण पूछा तो कोर्ट भी स्तब्ध रह गया।
संबंधित कोर्ट का क्षेत्राधिकार न होने के कारण मुख्य दंडाधिकारी आशारानी सिंह के न्यायालय में प्रकरण निस्तारित करने के लिए भेजा गया। मामले को जिला जज तनवीर अहमद के संज्ञान में लाया गया। जिला जज ने सीजेएम को उचित आदेश पारित करने का आदेश दिया। न्यायालय ने रिहाई का आदेश जारी कर जेल भेजा, तब कहीं जाकर बेगुनाह की जेल से रिहाई हो सकी, जबकि दूसरा आरोपित अनंत कुमार सिंह दोषमुक्त होते ही स्वयं के प्रयास से अपनी रिहाई करवा ली थी।
क्या है नियम
जेल में बंद प्रत्येक आरोपित या कैदी 14 दिन बाद न्यायालय में लाया जाता है। यह कानूनी कार्यवाही लगातार तब तक चलती रहती है, जब तक कि आरोपित को सजा न सुनाई जाए। इस प्रकरण में चार वर्ष तक रिमांड ही नहीं बनाया गया। उल्लेखनीय है कि एक आरोपित यदि कई मुकदमे में वांछित है तो प्रत्येक मुकदमे में अलग-अलग रिमांड बनती है। इस प्रकरण में यही भूल हो गई कि प्रत्येक 14 दिन पर रिमांड की कार्रवाई का पालन नहीं हुआ।
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