मंचों व गोष्ठियों तक सिमटी पर्यावरण की चिता
आमजनों तक नहीं पहुंच रहा पौधारोपण का सुखद परिणाम
सुलतानपुर: पौधारोपण कर पर्यावरण को बेहतर बनाने की कवायद मंचों व गोष्ठियों तक सिमटी है। जमीनी स्तर पर इसके सार्थक प्रयास कम दिख रहे हैं।
जीवन जीने के लिए अनिवार्य आक्सीजन की आपूर्ति करने वाले वृक्षों के प्रति लोग गंभीर नहीं हैं। साल दर साल लाखों पौधे रोपे जा रहे है। दो तीन वर्षों से इस दिशा में सार्थक बदलाव भी हो रहा है। पौधारोपण के बाद इनके जीवित रहना बेहद कम है। सरवाइवल रेट कम होने की वजह से पौधारोपण का सुखद परिणाम आमजनों तक नहीं पहुंच रहा है। सामाजिक और सार्वजनिक संस्थाएं पौधारोपण के नाम पर लाखों डकारती हैं, लेकिन धरती को बचाने की मुहिम आंकड़ेबाजी में उलझी है। इसी का परिणाम है कि जिले में कुल क्षेत्रफल का 0.45 फीसद ही वन क्षेत्र है।
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खत्म हो रहा पुराने बागों का अस्तित्व
लोगों की जरूरतों को पूरा करने वाली सैकड़ों वर्ष पुरानी बागें अब संयुक्त परिवार के स्वामित्व में है। आबादी बढ़ने तथा खाद्यान्न और मकान की जरूरत पूरी करने के लिए इनका प्रयोग हो रहा है। जिले की पांचों तहसीलों में बाग का रकबा घटकर 2065 हेक्टेयर रह गया है। वहीं 96 हजार हेक्टेयर में खेती हो रही है।
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सजोई नहीं जा सकीं स्मृतियां
सरकारी स्तर पर जिन लोगों के पास भूखंड नहीं है। वे अपने यादगार क्षण की स्मृतियों के लिए वन विभाग की ओर से चलाई जा रही स्मृति उद्यान योजना के तहत पौधारोपण में लोगों ने अभिरुचि दिखाई, लेकिन इन्हें भी नहीं सजो सका। जिला मुख्यालय के सिविल लाइन में यह उद्यान दुर्दशा में है। पौधे सूख गए हैं। लोगों की पौधरोपण में रुचि लेते हैं लेकिन किसानों के खेत का रकबा छोटा होने के चलते बड़े पैमाने पर पौधे नहीं लगा पाते।
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इस बार के पौधारोपण अभियान में विभागों को निर्देश दिया गया है कि रोपे जाने वाले पौधे सुरक्षित रहें, इसके लिए इनकी निरंतर निगरानी की जाए। हर विभाग अपने कर्मचारियों को इसका उत्तर दायित्व देगा। शासन स्तर पर भी पौधों की बढ़त देखने के लिए समय-समय पर्यवेक्षक निरीक्षण करेंगे।
आनंदेश्वर प्रसाद, प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी