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इ तौ नाइंसाफी है, 'उनकी' की सीट पै मनसेधुअन कै बोलबाला

पंचायत चुनाव के मद्देनजर आधी-आबादी को है गंवई राजनीति की पूरी चिता।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Apr 2021 12:27 AM (IST)Updated: Thu, 08 Apr 2021 12:27 AM (IST)
इ तौ नाइंसाफी है, 'उनकी' की सीट पै मनसेधुअन कै बोलबाला
इ तौ नाइंसाफी है, 'उनकी' की सीट पै मनसेधुअन कै बोलबाला

अभिषेक मालवीय, सुलतानपुर

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नामांकन की गहमागहमी के बीच जागरण टीम भरी दुपहरी ब्लाक मुख्यालय से लौट रही थी देवी माई के थान के आसपास छांव में बैठी महिलाएं दिखी। आधी-आबादी की चौपाल लगी देख जब पास पहुंचे तो पता चला गेहूं कटाई से फुर्सत पाकर सब एक साथ बैठी सुस्ता व गांव की सरकार चुनने को लेकर बातचीत में मशगूल थीं।

कैमरा देख बात थम गई, फिर चुनाव के हालात पर बात चली तो बहुत कुरेदने पर सुनीता व रोशनी बोली आप तो साहब हो खुदै देख लोग केतनी नाइंसाफी बा, सरकार मेहररूअन के बरे सीट रिजरफ किहिस लेकिन जहां देखो तहां मनसेधुअन कै बोलबाला अहै। तब तक सरस्वती बोल पड़ी जे पढ़े लिखे ते राज करे। डीएम, सीएम, पीएम के कुर्सी तक तो पहुंच गईं, सांसद औ विधायक मेहररूएै बनी अहां। शिव पत्ती व संभलू बोली ऊ बड़ी बड़ा कै बात है परधानी बीडीसी म तौ आधी-आबादी घूंघट के आड़े में बइठी रहत है मोहर दस्कत तौ बाबा, चाचा, दादा या फिर नेताइन कै बेटवा औ आदमिएै लगावत है।

तब तक फलैश चमका तौ चेहरों पर साड़ी के पल्लू आ गए, लेकिन कीचड़ वाली ऊबड़-खाबड़ रास्तों से चलने की मजबूरी जुबां पर थी। मंजू बोलीं तौ का खेत खलिहान जाइकै रास्ता बढियां नाय होई का चाही,नाली नाबदान कै पानी कइसे निकरे एकै व्यवस्था कहूं देखा थै। शौचालय तौ अइसे बने कि ओहमा जाए तौ जिदगी दांव पे रहा थै। प्रधान बीडीसी होब जरुरी नाही न मेहररुअन कै शिक्षा स्वास्थ्य शौचालय व सफाई कै व्यवस्था आधी आबादी के मुताबिक होब जरूरी बा। फिर एक साथ सब हंस पड़ी कहीं फोटू खींचत अहा तौ आधी आबादी कै पूरी समस्या सही -सही छापेव। रोजै तौ प्रचार होत अहै जे आवत अहै गोड़ धइके आशीर्वादै मागत अहै।

वोटे कै गुणा-भाग सब कराथें का जरूरी अहै जहां मंसेधुएै वोट हारा होंए हुंआ मेहररूऔ देंय। घरे व खेती गृहस्थी के काम मा जादा जिम्मेदारी निभावै वाली मेहररूएै पंचायत चुनाव मा केहू से पीछे न रहिहैं। जीत हार तौ आधी-आबादी के वोटै से होए। गोसाई देवी सब देखति अहां जे स्त्री कै इज्जत न करे वोकर बेड़ा पार न होए। महिलाओं में चुनाव को लेकर इस तरह की कसक व मताधिकार के प्रति जिम्मेदारी से ही लोकतंत्र जीवित है।


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