मुद्दा: उच्च शिक्षा की अनदेखी, पलायन मजबूरी
युवाओं की गंभीर समस्या नहीं बन पाती चुनावी मुद्दा
हरीराम गुप्ता, सुलतानपुर: चुनावी बिगुल बजते ही वादे-इरादों के बीच मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। विकास और हर हाथ को रोजगार देने की घोषणाओं का भी दौर शुरू हो गया है। यह बात दीगर है कि जिले में उच्च शिक्षा के विस्तार पर चुप्पी लगातार बरकरार है। इससे भविष्य बनाने के लिए छात्र-छात्राओं को महानगरों की ओर रुख करना पड़ रहा है। यह उनकी मजबूरी है। हैरत की बात यह है कि युवाओं की यह प्रमुख समस्या चुनावी मुद्दा नहीं बन पाती।
तकनीकी शिक्षा का अभाव:
जिले में संचालित तकरीबन डेढ़ सौ डिग्री कालेजों में स्नातक व परास्नातक की कक्षाएं चलाई जाती हैं। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में केएनआइटी ही एकमात्र जरिया है। नई शिक्षा नीति के तहत कौशल विकास के लिए छात्रों को पारंगत करने की दिशा में भी महज खानापूर्ति की जाती है। संसाधनों से अभावग्रस्त प्राइवेट आइटीआइ संस्थान भी महज फीस वसूली तक ही सिमटकर रह गए हैं।
महंगी शिक्षा तोड़ रही अभिभावकों की रीढ़
मुसाफिरखाना में स्थित एकमात्र राजकीय डिग्री कालेज नए जनपद के सृजन के साथ अमेठी में चला गया। इससे गरीब परिवार के बच्चों को स्नातक व परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए महंगी फीस चुकानी पड़ती है। व्यावसायिक कोर्स में दाखिला लेकर जीवन संवारने की कोशिश करने वालों को भी लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
स्वायत्तशासी संस्था मुद्दे पर भी सब मौन:
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से संपूर्ण संसाधनों से लैस जिले के एक महाविद्यालय को स्वायत्तशासी संस्था के रूप में घोषित करने की बात कही गई थी। ये संस्थाएं विश्वविद्यालय के अधीन न रहकर परीक्षा कराने से लेकर सभी निर्णय खुद ले सकेंगी। मानक के अनुरूप केएनआइ के होने के बावजूद भी इसे विकसित नहीं किया जा रहा है। इसका खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता है। कारण विश्वविद्यालय की तरफ से जारी होने वाले निर्देशों पर निर्भरता की वजह से न तो समय से परीक्षाएं हो पाती हैं और न ही परिणाम जारी हो पाते हैं।
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फोटो- 12
वक्त शिक्षा के साथ तकनीकी रूप से दक्ष होकर स्वावलंबी होने का है। इससे सरकारी नौकरी न मिलने से खुद का कारोबार शुरू किया जा सकता है। तकनीकी शिक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर सरकार के नुमाइंदों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
-डा. राधेश्याम सिंह, हिदी विभागाध्यक्ष केएनआइ फोटो- 13
महाविद्यालयों में पास आउट होने वाले छात्रों की अपेक्षा कई गुना संख्या एडमिशन लेने वालों की होती है। इससे स्थितियां विकट हो रही हैं और पठन-पाठन प्रभावित होता है। भीड़ को रोकने के उपायों पर विचार होना चाहिए।
-ज्ञानेंद्र विक्रम सिंह रवि, असिस्टेंट प्रोफेसर राणा प्रताप पीजी कालेज फोटो- 14
जिले में अच्छा कोचिंग संस्थान न होने से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में दिक्कत होती है। अच्छे कंप्यूटर सेंटर न होने की वजह से भी लोगों को दूर जाना पड़ता है।
-आकांक्षा सिंह, छात्रा फोटो- 15
राजकीय डिग्री कालेज न होने से निजी संस्थानों को मोटी फीस चुकता कर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। इससे काफी संख्या में स्टूडेंट की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है।
-सौम्या सिंह, छात्रा