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मुद्दा: बाध व्यवसाय को नहीं मिल सका उद्योग का दर्जा

एक जिला एक उत्पाद योजना भी इस लघु उद्योग को नहीं दे सकी संजीवनी सैकड़ों परिवारों की मेहनत का लाभ उठा रहे बिचौलिए अन्य प्रदेशों में भी जाता है यहां का बाध

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 11:12 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:12 PM (IST)
मुद्दा: बाध व्यवसाय को नहीं मिल सका उद्योग का दर्जा
मुद्दा: बाध व्यवसाय को नहीं मिल सका उद्योग का दर्जा

शिवशंकर पांडेय, सुलतानपुर: देश के कोने-कोने में उपयोग होने वाला जिले का बाध सरकारी तंत्र व जनप्रतिनिधियों के उपेक्षात्मक रवैए के कारण पहचान को तरस रहा है। एक जिला एक उत्पाद योजना भी इसको संजीवनी नहीं दे सकी। इसका निर्माण करने वाले सैकड़ों परिवारों को वाजिब कीमत नहीं मिल रही है। उनकी मेहनत का लाभ बिचौलिए उठा रहे हैं। दशकों से इस व्यवसाय को उद्योग का दर्जा दिए जाने का मुद्दा चुनाव में उठता है, जनप्रतिनिधि आश्वासन भी देते हैं, लेकिन नतीजा सिफर रहता है।

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आधी आबादी निभाती है जिम्मेदारी

बाध निर्माण करने में आधी आबादी की अहम भूमिका है। नदी के किनारे से जंगली घास काटने से लेकर ऐंठने तक की जिम्मेदारी महिलाओं पर रहती है। बाध को सुखाकर सुंदर रूप देने के उपरांत वाहन पर लादकर वे जिला मुख्यालय स्थित मंडी तक पहुंचाती हैं।

बोलीं महिलाएं:

हमारे यहां कई पीढि़यों से बाध बनाने का काम किया जाता है। हम लोग सरपत काटकर उससे बाध बनाते हैं, जिससे घर-परिवार का खर्च चलता है। सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है।

-कंचन निवासी, बदरुद्दीनपुर महिलाएं और पुरुष सभी मिलकर मूंज का बाध बनाते हैं। यह 40 से 60 रुपये प्रति किलो बिकता है। अब तक हम लोगों को एक अदद मंडी तक नहीं मिल सकी।

-सुनीता निषाद, बदरुद्दीनपुर बाध बनाने में पूरा परिवार लगता है। बीस किलो बाध बनाने में पूरा हफ्ता लग जाता है। मूंज काटकर भिगोकर पेड़ से रगड़कर ऐंठने में बहुत मेहनत है। इसका पूरा लाभ नहीं मिलता। ठेकेदार कम दाम में बाध खरीदते हैं।

-मुलेमा देवी, बभनगवां

जनप्रतिनिधियों से निराशा

बाध का काम पूरे जिले में नदी किनारे बसे लोग करते हैं। करीब छह-सात दशक से बाध व्यवसाय बना है। सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी इसी से चल रही है। जनप्रतिनिधियों की अनदेखी से इसको अब तक उद्योग का दर्जा नहीं मिल सका।

सांसद वरुण गांधी की पहल पर बनी थी बाध मंडी:

तत्कालीन सांसद वरुण गांधी ने बाध व्यवसाय की उपयोगिता जानी। हर तहसील में बाध मंडी बनाने की पहल की। भदैंया के बभनगवां व लम्भुआ के पास दो बाध मंडी भी बनाई गई। शहर में भी इसका निर्माण हुआ, लेकिन प्रशासन की लापरवाही से बिचौलिए वहां भी हावी हैं और इसका लाभ बाध व्यवसाय को नहीं मिल सका।


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