हसनपुर रियासत ने अंग्रेजों के दांत किए खट्टे
तालुकेदारों की उदासीनता के बावजूद अंग्रेजों से नहीं डरे राजा हसनपुर
हरीराम गुप्ता, सुलतानपुर: राजभरों को हराने के बाद जिले में पैर जमाने कोशिश में फिरंगी हुकूमत किसी विरोध से बेफिक्र हो गई थी। वहीं, बदले की भावना और देश को आजाद करने की ललक में हर कोई बेताब था। सन 1857 की क्रांति के दौरान फिरंगियों ने चांदा के रास्ते जिले में प्रवेश किया तो हसनपुर रियासत मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हो गई। राज परिवार द्वारा लड़ी गई जंग आज भी यहां के लोगों में देश सेवा का जज्बा पैदा करती है।
शहर से पश्चिम की ओर दस किमी दूर हसनपुर रियासत वही स्थान है, जहां चंदेरी का किला फतेह करने के बाद खुद शेरशाह सूरी ने 19 दिन तक प्रवास किया था। बरियार सिंह की चौथी पुश्त त्रिलोकचंद्र के इस वंशज ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।
1857 में कर्नल फिशरमैन 10 हजार फौज लेकर आगे बढ़ रहा था। राजा हसन अली के नेतृत्व में अमहट के गोराबारिक में अंग्रेजों से भीषण जंग शुरू हो गई, जिसमें उनका बेटा शहीद हो गया। मुसाफिरखाना के पास कादूनाला पर अंग्रेजों से हुई दूसरी भिड़ंत में राजा हसन अली भी वीरगति को प्राप्त हो गए। बलिदानी पिता-पुत्र की कब्रगाह आज भी बंधुआकला के इमामगंज स्थित रेल ट्रैक पास मौजूद है। इंपीरियल गजट, गजेटियर आफ अवध प्राविस व वीडी सावरकर कृत 1857 का प्रथम स्वतंत्रता समर पुस्तक में हसनपुर रियासत का जिक्र मिलता है।
ब्रिटिश हुकूमत ने दिया तोप का लाइसेंस:
राजा कुंवर मसूद बताते हैं कि हसनपुर रियासत राजा अवध के नवाब के अधीन थी। 1856 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह को कैद करने व तालुकेदारों की उदासीनता के चलते अंग्रेजों की पकड़ जिले में मजबूत हो गई। बावजूद इसके उनके पूर्वजों ने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। वफादार व कर्तव्यनिष्ठ होने के चलते ही 1942 में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा तत्कालीन राजा व अंग्रेजी सेना में लेफ्टिनेंट रहे राजा अहमद अली खां को तोप का लाइसेंस दिया गया था।