फ्लैश बैक: बगैर रकम लड़ा चुनाव, बन गए विधायक
1991 में अरुण प्रताप सिंह पहली बार बने थे विधायक तन पर ठीक तरह के कपड़े भी न थे समर्थक ने किया था इंतजाम
सुलतानपुर: चुनाव में अंधाधुंध हो रहे खर्च दो दशक पहले बेमानी माने जाते रहे। रईस और राजघराने के लोगों की इस विधानसभा सीट पर पहली दफा 1991 में एक ऐसा शख्स भी चुनाव जीत गया, जिसकी जेब में फूटी कौड़ी और तन पर ठीक तरह के कपड़े भी नहीं थे। बिना रकम के चुनाव लड़ा और जनता का विश्वास हासिल किया। 1991 में अरुण प्रताप सिंह पहली बार बने थे विधायक, तन पर ठीक तरह के कपड़े भी न थे, समर्थक ने किया था इंतजाम।
जीहां, हम बात कर रहे हैं आरएसएस पृष्ठभूमि के व देवाढ़ निवासी भाजपा विधायक अरुण प्रताप सिंह की। ईमानदारी व सादगी की मिसाल इस शख्सियत को भाजपा ने 1991 में प्रत्याशी बनाया था। इसके पहले इस सीट से रियासत व राजघराने से जुड़े लोग विधायक चुने गए थे। बड़े घरानों के लोगों को भी जनता ने जनप्रतिनिधि चुना था।
इस सीट से जब अरुण को टिकट मिला तो उनके तन पर ठीक तरह से कपड़े तक न थे। उस वक्त उनके एक समर्थक की लम्भुआ में कपड़े की दुकान थी। आनन-फानन दो जोड़ी कपड़े सिलवाए गए, फिर शुरू हुआ था चुनाव प्रचार। दिवंगत पूर्व विधायक की पत्नी डा. इंदूरेखा सिंह ने यह यादें साझा कीं।
बताया कि 1993 व 1996 के विधानसभा चुनाव में पति के प्रचार में साथ-साथ रहीं। अधिकतर पोलिंग बूथ पर बस्ते के साथ जाने वाली रकम भी कार्यकर्ताओं ने प्रेमपूर्वक अस्वीकार कर दी थी। उस वक्त यह बहुत बड़ी बात थी। लगातार तीन बार उन्हें (अरुण को) भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था। 1993 में सपा-बसपा गठबंधन के दौरान मामूली मतों से चुनाव हार गए थे। 1991 व 1996 में वह विधायक चुने गए थे।