..अब खेती में आजमा रहे इंजीनियरिग का तजुर्बा
एक एकड़ में काली मिर्च के साथ ऑस्ट्रेलियन टीक की कर रहे खेती
सुलतानपुर : कालीमिर्च की खेती यूं तो दक्षिण भारत में सर्वाधिक होती है, लेकिन इस बार जिले के लम्भुआ तहसील के शोभीपुर गांव में सेवानिवृत इंजीनियर कालीमिर्च की खेती एक एकड़ में खेती कर रहे है। यही नहीं इसी खेत में वह ऑस्ट्रेलियन टीक (सागौन की विशेष प्रजति) भी लगाई है, जो कालीमिर्च के पौधों का खुराक भी पूरा कर रहा है।
गांव के सुरेंद्र बहादुर सिंह विद्युत विभाग में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए अधिशासी अभियंता का पदभार संभालने के बाद सितंबर 2014 में सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने अपना तजुर्बा खेती में अजमाया। पहले पांच एकड़ में केले की खेती की। फल अच्छा तैयार हुआ तो कादीपुर, सूरापुर, लम्भुआ के साथ प्रतापगढ़ की महुली मंडी के फल विक्रेता पहुंचे खेत से ही खरीदारी कर ली। इस दौरान उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ। अब उन्होंने मसाले की खेती की तरफ रुख किया है। करीब एक एकड़ खेत में काली मिर्च के साथ ऑस्ट्रेलियन टीक के पौधे भी रोपे गए हैं। ठीक एक हजार किमी दूर कोंडा (छत्तीसगढ़) से यह पौधे लाये गए हैं। काली मिर्च के साथ ऑस्ट्रेलियन टीक के पौधे रोपने के पीछे आय के अलावा वैज्ञानिक कारण भी है। किसान बताते हैं कि आस्ट्रेलियन टीक की जड़ों में मौजूद गांठें नाइट्रोजन की होती हैं। जिससे काली मिर्च के पौधे को खुराक भी मिलती है। सिर्फ छह से नौ इंच की दूरी पर लगाये गए यह पौधे एक-दूसरे के पूरक भी हैं। बड़ा होकर ऑस्ट्रेलियन टीक का पेड़ काली मिर्च की लताओं को सहारा तो देता ही है।
काफी महंगी है ऑस्ट्रेलियन टीक की लकड़ी
फर्नीचर के लिए जिन लकड़ियों की मांग होती है, उनमें ऑस्ट्रेलियन टीक काफी मंहगी कीमत पर बिकता है। किसान इससे फर्नीचर कारोबारी को बेच कर खासी कमाई कर सकते हैं। इस लकड़ी से बने फर्नीचर बेहद उम्दा माने जाते हैं। इससे बनी कुर्सी-मेज की मांग भी खूब रहती है।