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जब मुनीर बख्श आलम ने समझा गीता का तत्व ज्ञान

बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्त सहायक प्रोफेसर डा. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर पक्ष-विपक्ष दोनों ही खेमों में जबरदस्त चर्चा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 06:11 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 09:28 PM (IST)
जब मुनीर बख्श आलम ने समझा गीता का तत्व ज्ञान
जब मुनीर बख्श आलम ने समझा गीता का तत्व ज्ञान

जासं, सोनभद्र : बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्त सहायक प्रोफेसर डा. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर पक्ष-विपक्ष दोनों ही खेमों में जबरदस्त चर्चा है। इस बहस में उस व्यक्तित्व को शामिल किया जा रहा है जिसने मजहब से नहीं भाषा से प्रेम किया और उसकी कृतियों को पढ़-लिखकर एक से बढ़कर नया कीर्तिमान स्थापित किया। वे हैं सोनांचल के स्व. मुनीर बख्श आलम। यथार्थ गीता के उर्दू अनुवादक स्व. आलम संस्कृत भाषा सीखने में कंटीले रास्तों का सफर पूरा किया।

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एक जुलाई, 1943 को शाहगंज थाना के बनौरा गांव में जन्मे आलम साहब शुरू से ही मेधावी थे। संस्कृत से गहरा लगाव का ही परिणाम था कि मुसलमान होते हुए भी हाईस्कूल, इंटर के बाद बनारस हिदू विश्वविद्यालय में संस्कृत से स्नातक की डिग्री ली। यहां हिदी में परास्नातक और बीएड करने के बाद सोनभद्र में राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज में शिक्षक की नौकरी की। फिर सीमेंट फैक्ट्री चुर्क स्थित इंटर कॉलेज में संस्कृत शिक्षक के रूप में नियुक्ति हुई। उन्होंने यहां हाईस्कूल व इंटर के छात्रों को संस्कृत पढ़ाई। बड़े पुत्र खुर्शीद आलम कहते हैं, पिताजी का मन संस्कृत में बहुत ज्यादा लगता था। यही वजह थी कि 1983-84 से लेकर 2003 तक चुर्क इंटर कॉलेज में संस्कृत के शिक्षक पद पर रहे। हिदी भी पढ़ाया करते थे।'संस्कृत भाषा पर और अधिक मजबूत पकड़ बनाने के लिए मुनीर बख्श आलम स्वामी अड़गड़ानंद के सानिध्य में भी रहे। यहां उन्होंने भागवत गीता का सार गर्भित अध्ययन किया। उसके बाद यथार्थ गीता पढ़ी। खुर्शीद आलम कहते हैं कि स्थिति यह हुई कि पिताजी ने 2000 में यथार्थ गीता का उर्दू अनुवाद हकीकी गीता नाम से कर दिया।

खुर्शीद बताते हैं कि उनका पूरा परिवार संस्कृत भाषा का सम्मान करता है। घर का हर बच्चा संस्कृत भाषा में अव्वल दर्जा प्राप्त करता है। वे खुद हाईस्कूल में संस्कृत विषय में अधिकतम अंक हासिल किए थे। कहते हैं कोई भी भाषा जाति व धर्म से बंधी नहीं है। हर संप्रदाय के लोग कोई विषय पढ़ सकता है और पढ़ा सकता है। जून, 2019 में दुनिया को अलविदा कहने वाले आलम साहब ने निश्चित ही संस्कृत भाषा को ख्याति दिलाई है। विरोध के नाम पर दुकान चलाने वाले चंद चाटुकार यह समझ लें कि ज्ञान किसी का संपत्ति नहीं है। ज्ञानी का सम्मान हर हाल में होना चाहिए।


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