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डिजिटल इंडिया के 'ब्लैक जोन' में आज भी हैं सैकड़ों गांव

जागरण संवाददाता सोनभद्र बिहार झारखंड छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से सटे सोनांचल में डिजि

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 09:12 PM (IST)Updated: Tue, 15 Sep 2020 05:06 AM (IST)
डिजिटल इंडिया के 'ब्लैक जोन' में आज भी हैं सैकड़ों गांव
डिजिटल इंडिया के 'ब्लैक जोन' में आज भी हैं सैकड़ों गांव

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से सटे सोनांचल में डिजिटल इंडिया का उद्देश्य पूरा होने में ब्लैक जोन आड़े आ रहा है। करीब ढाई साल पहले ब्लैक जोन को सामान्य गांवों की श्रेणी में लाने का प्रस्ताव भारत सरकार को गया, लेकिन वह आज तक ठंडे बस्ते में पड़ा है। अब पुन: जिला प्रशासन की ओर से केंद्र और राज्य सरकार को इससे संबंधित पत्र भेजा गया है। कहा गया है कि अगर 143 टॉवर लगा दिए जाएं तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो जाएगा, लेकिन प्रस्ताव पर अमल कब तक होगा यह किसी को नहीं पता।

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21वीं सदी में दुनिया कहां से कहां पहुंच गई। संचार के क्षेत्र में भी काफी तेजी से विकास हुआ। 4जी नेटवर्क के जरिए जहां लोग फेस-टू-फेस बात कर रहे हैं, पलक झपकते सूचनाओं का आदान-प्रदान हो रहा है वहीं नक्सल प्रभावित आदिवासी क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में यह सपने जैसा है। गैर प्रांतों से सटे गांवों में संचार का इंतजाम मुकम्मल न होने से जहां सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में पुलिस को कठिनाई होती है वहीं लोगों को डायल 112, एंबुलेंस सेवा से लेकर अन्य हेल्पलाइन का भी लाभ नहीं मिल पाता। और तो और संचार व्यवस्था की कमी के कारण पारदर्शिता में भी अड़चन आती है। इस समस्या के समाधान के लिए करीब ढाई वर्ष पहले जिला प्रशासन, पुलिस विभा और दूर संचार विभाग ने एक सर्वे किया था। उसमें यह पता चला था कि 143 टॉवर की जरूरत है। अगर यह लग जाए तो संचार की समस्या दूर हो जाएगी। समय समय प्रस्ताव भी सरकार को भेजा गया, लेकिन अब तक मामला ठंडे बस्ते में है। वर्तमान जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की ओर से भी पत्र भेजा गया है।

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इन इलाकों में नहीं है संचार व्यवस्था

वैसे तो जिले के 40 फीसद हिस्से में कमजोर नेटवर्क की समस्या है, लेकिन कुछ इलाके ऐसे हैं जहां किसी भी कंपनी का नेटवर्क बिल्कुल काम नहीं करता। उसी में से एक है जुगैल का इलाका। यहां तो पुलिस के अधिकारी भी अपने थाना प्रभारी से बात करने के लिए वायरलेस पर मैसेज पास करते हैं। मध्य प्रदेश की सीमा से सटे इस इलाके के लोग या पुलिस वाले थाने से करीब 15 किमी की दूरी पर भरहरी या पहाड़ी पर चढ़कर बात करते हैं। बिहार से सटे मांची, रामपुर बरकोनिया क्षेत्र में भी यहीं स्थिति है। दुद्धी थाना क्षेत्र कोरची इलाके में भी यहीं समस्या। जुगैल में एफआइआर तो चोपन में ऑनलाइन

संचार व्यवस्था की खामियों की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी जुगैल थाने पर तैनात कर्मियों को होती है। यहां थाने में पहले ऑफलाइन एफआइआर दर्ज कर ली जाती है। बाद में वहां के कर्मी करीब 25 किमी दूर चोपन थाने आते हैं। यहां आने पर ही सबकुछ ऑनलाइन होता है। यहां उसे सिक कराया जाता है। इसी तरह सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से होने वाले वितरण को इस इलाके में मैनुअल तरीके से कराया जाता है। यहां ई-पास मशीन काम ही नहीं करती।

जिलाधिकारी एस राजलिगम का कहना है कि सर्वे के आधार पर 143 टॉवरों की जरूरत है। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। अब वहां से जो भी निर्देश जाएगा उसका पालन किया जाएगा। नेटवर्क समस्या से काफी ज्यादा दिक्कत होती है।

पुलिस अधीक्षक आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि नेटवर्क की समस्या कुछ थाना क्षेत्रों में ज्यादा है। जिस थानाक्षेत्र में ऐसी समस्या है वहां वायरलेस सेट से बात होती है। बाकी नक्सल प्रभावित इलाकों में टॉवर लगाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है।


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