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आउटसोर्सिंग को लेकर विद्युतकर्मियों में उबाल

उर्जा निगमों में आउटसोर्सिंग के माध्यम से खाली पदों के भरने को लेकर भारी विरोध की संभावना पैदा हो गयी है।ओबरा तापीय परियोजना में अवर अभियंताओं और

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 06:33 PM (IST)Updated: Wed, 04 Dec 2019 09:48 PM (IST)
आउटसोर्सिंग को लेकर विद्युतकर्मियों में उबाल
आउटसोर्सिंग को लेकर विद्युतकर्मियों में उबाल

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : उर्जा निगमों में आउटसोर्सिंग के माध्यम से खाली पदों के भरने को लेकर भारी विरोध की संभावना पैदा हो गई है। ओबरा तापीय परियोजना में अवर अभियंताओं और परिचालक वर्ग के 40 के करीब पदों को आउटसोर्सिंग से भरने की सुगबुगाहट लगने के बाद विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने मोर्चा खोल दिया है। समिति ने इसे निजीकरण की दिशा में उठाया गया कदम बताया है। इससे पहले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पावर कारपोरेशन ने तकनीशियनों के 4000 से ज्यादा पदों पर स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन चुनाव के बाद उक्त प्रक्रिया को निरस्त कर दिया गया था। उसके बाद पिछले कुछ महीनों में पूरे प्रदेश में आउटसोर्सिंग के माध्यम से तकनीशियनों की नियुक्ति कर दी गई। इसके अलावा 30 सहायक अभियंताओं को भी आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियुक्त कर दिया गया। अब अनुरक्षण और मरम्मत में चल रही ओबरा तापीय परियोजना की 200 मेगावाट वाली 12वीं इकाई में जूनियर इंजीनियरों एवं परिचालकों की नियुक्ति किए जाने की सम्भावना पर उबाल बढ़ते जा रहा है।

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संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा है कि आउटसोर्सिंग के माध्यम से किसी भी नियुक्ति का भारी विरोध किया जाएगा। कहा कि यह निजीकरण की ओर बढ़ते कदम है। कोल हैंडलिग का मामला है अटका

ओबरा परियोजना के ब तापघर के कोलहैंडलिग प्लांट की एकल निविदा का मामला भी निजीकरण की ओर बढ़ता कदम बताया गया था। बीते अगस्त माह में कोल हैंडलिग प्लांट के संचालन का जिम्मा एक फर्म को दे दिया गया था, जिसका भारी विरोध सामने आया था। उक्त प्रक्रिया के शुरू होने पर ही संयुक्त संघर्ष समिति ने लागत बढ़ने की संभावना जताई थी। जब निविदा का अंतिम भाग खुला तो संघर्ष समिति का दावा सच हो गया था। पुरानी प्रक्रिया में ओबरा ताप विद्युत गृह में 1000 मेगावाट क्षमता की मशीनों के लिए कोल हैंडलिग प्लांट के परिचालन एवं अनुरक्षण सम्बन्धी सभी निविदाओं का खर्च दो वर्ष में लगभग 17 करोड़ आता है। लेकिन एकल निविदा में यह 22 करोड़ के लगभग पहुंच गया। फिलहाल यह मामला भी भारी विरोध के कारण अटका हुआ है। संघर्ष समिति के अनुसार निजीकरण सभी के लिए घटक है। इसका सीधा असर आम बिजली उपभोक्ताओं पर पड़ता है ।


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