नहीं खुली दुकान, वनोपज को लेकर वनवासी परेशान
लघु वनोपज के प्रति सरकारी तंत्र की बेपरवाही की हद हो गई। आमतौर पर अक्टूबर माह से लघु वनोपज की खरीदारी के लिए क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों के अनुसार वन निगम के कर्मी जहां-तहां थोड़ी बहुत अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे अबकी वह भी नदारद है।
जागरण संवाददाता, दुद्धी (सोनभद्र) : लघु वनोपज के प्रति सरकारी तंत्र की बेपरवाही की हद हो गई। आमतौर पर अक्टूबर माह से लघु वनोपज की खरीदारी के लिए क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों के अनुसार वन निगम के कर्मी जहां-तहां थोड़ी बहुत अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे, अबकी वह भी नदारद हैं। इससे जुड़े सूत्र बताते है कि रेणुकूट वन प्रभाग के किसी भी क्षेत्र में अभी लघु वनोपज की खरीदारी शुरू नहीं हुई है। इसका खामियाजा गरीब आदिवासियों एवं वनवासियों को भुगतना पड़ रहा है। वे कड़ी मशक्कत के बाद एकत्र किए कए वनोपज को औन-पौन दाम में क्षेत्रीय फड़ियों को बेचने को विवश हैं।
अक्टूबर से मार्च माह के अवधि में दुद्धी, म्योरपुर, बभनी, जरहां, बघाडू, विढमगंज वन क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों में लगने वाली वन निगम की लघु वनोपज की दुकानें अभी तक नदारद हैं। जबकि इस समय वनतुलसी, चकवड़ बीज सरीखे वन उपज लेकर दूरदराज के जंगली इलाके से नजदीकी बाजारों में आने वाले ग्रामीणों इसके वजह से मायूस हो जा रहे है। फुटकर दुकानदार उपज की खरीद करने से कतरा रहे हैं, उनका तर्क है कि वे खरीद शुरू करेंगे तो कर्मी आकर शोषण करना शुरू कर देंगे। यहीं बहाना कर वे उनके अथक परिश्रम से लायी गई वनोपज का रेट काफी कम कर देते है जो वनवासी पड़ोसी राज्य की सीमाओं से सटे हैं। वे अपनी उपज को वहां बेचने को विवश है। इसको लेकर समूचे क्षेत्र में महकमे के प्रति नाराजगी देखने को मिल रही है। इंतजार के बाद भी खरीदार नहीं
गुरुवार को दुद्धी साप्ताहिक बाजार में वनतुलसी नामक लघुवनोपज लेकर सुदूर क्षेत्र खोखा से आये ग्रामीण शंकर चेरो ने बताया कि साहब गउवना में जाए वाले नेतवन एवं अफसरवन कहेलन कि सरकार गरीबी हटावे बदे कई ठो स्कीम चलईले बा, इहां सुबहै से आके एक बोरिया वन तुलसी बेचे बदे परेशान हई, कउनो लेवार ही नाहीं मिलत बा। यही जमीनी हकीकत समूचे क्षेत्र में देखने को मिल रही है। क्या कहते हैं पूर्व व्यवसायी
दशकों पूर्व इस व्यवसाय से जुड़े एक व्यवसायी ने बताया कि सरकार की लघु वनोपज के लिए बनाई गई नीति आदिवासियों एवं वनवासियों के मौलिक अधिकारों पर भी प्रतिबंध लगाकर बेरोजगारों की पूरी फौज खड़ी कर दिया है। उनके मुताबिक यदि राज्य सरकार लघु वनोपज को अनुज्ञा परिवहन पत्र से मुक्त कर दे,तो वनों एवं नदी नालों में नष्ट हो रहे सैकड़ों करोड़ रूपये के लघुवनोपज का एक बड़ा उद्योग इस क्षेत्र में खड़ा हो सकता है। जिसमें हजारों लोगों की आजीविका के साथ परिवार की ठोस आवश्यकताओं की पूर्ति किया जा सकता है।