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विभागीय खामियों की वजह से जंगल में ही दफन लघुवनोपज

जागरण संवाददाता दुद्धी (सोनभद्र) सोनभद्र की दुरुह वादियों में अभी भी दुर्लभ जड़ी-बूटियों का अकू

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 08:14 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 08:14 PM (IST)
विभागीय खामियों की वजह से जंगल में ही दफन लघुवनोपज
विभागीय खामियों की वजह से जंगल में ही दफन लघुवनोपज

जागरण संवाददाता, दुद्धी (सोनभद्र) : सोनभद्र की दुरुह वादियों में अभी भी दुर्लभ जड़ी-बूटियों का अकूत भंडार प्राकृतिक रूप से विद्यमान है। विभागीय खामियों एवं अनावश्यक सरकारी शोषण की वजह से क्षेत्रवासियों का इससे मोहभंग हो रहा है। यही कारण है कि दुर्लभ जड़ी बूटियां जंगलों में ही दफन हो जा रही हैं। इसे सरकारी संरक्षण देकर न सिर्फ लोगों की सेहत सुधारी जा सकती है, बल्कि दुरुह अंचलों में जैसे तैसे जीवन निर्वहन कर रहे आदिवासी-वनवासियों की जिदगी भी संवारी जा सकती है।

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जिले के जंगल में दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंड़ार है। आदिवासी परिवार दशक भर पूर्व इन जड़ी-बूटियों को एकत्रित कर आसपास के बाजारों में बेचकर कमाई किया करते थे कितु बीते वर्षों में इसको लेकर न जंगल में आबाद ग्रामीणों को जड़ी बूटियों के प्रति जागरूक किया जा रहा है और ना ही सरकारी स्तर पर उसकी खरीदी के लिए फड़ लगाए जाते है। सरकारी सहयोग न मिलने के कारण रामबाण व दुर्लभ कीमती जड़ी-बूटियों को गांव में ही ओने पौने दाम पर दलाल व व्यापारियों को बेच देते है। सरकार सहयोग करे तो जिले में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में आदिवासी जड़ी-बूटी उद्योग स्थापित कर सकेंगे या फिर जड़ी-बूटियों के रेट तय हो जाएं तो इस क्षेत्र के जंगलों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटी से आदिवासी अपनी किस्मत बदल सकते हैं।

कई आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जंगलों में

रेणुकूट वन प्रभाग में गोरकू, सतावर, शंखपुष्पी से लेकर बेलगुदा, सतावर, शंखपुष्पी, हरश्रृंगार सियारी, पुर्नवा, नागरमोथा, चीडगोंद, खैरगोंद, आंवला, बेरजड, इन्नीपंचांग, तेंदुपत्ता, महुआ, अर्जुनछाल गोरकू, अमरवेल, पियार जैसी जड़ी-बूटियां प्रचूर मात्रा में मिलती है।

चलाया जाएगा जागरुकता अभियान

डीएफओ मनमोहन मिश्र ने बताया कि इसकी जिम्मेदारी सरकार द्वारा वन निगम को दिया गया है। वनवासियों का जीवन स्तर सुधारने के लिए वन विभाग द्वारा कार्यशाला का आयोजन कर उन्हें जागरूक करने का अभियान शुरू किया जाएगा। उन्हें वनसंपदाओ के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देने के साथ प्रशिक्षित किया जाता है। आदिवासियों द्वारा जंगल में मिलने वाली जड़ी-बूटियों का उचित उपयोग किया जाए तो वनवासियों का आर्थिक लाभ होगा, जिससे उनके जीवन स्तर में भी सुधार आएगा।


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