ऊर्जा निगमों में मानव शक्ति की कमी
जागरण संवाददाता ओबरा (सोनभद्र) वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद के विखंडन के ब
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद के विखंडन के बाद बनाए निगमों में मानवशक्ति की भारी कमी होती जा रही है। लगातार उपभोक्ताओं एवं नई इकाइयों में वृद्धि के बावजूद खाली पदों पर नियुक्ति व नए पदों का सृजन अपेक्षित तौर पर नहीं हो पा रहा है।
पूर्वांचल वितरण निगम के निजीकरण के मसौदे को लेकर हुए आंदोलन के बाद वृहद सुधार के लिए तीन माह का समय दिया गया है। इसको लेकर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने सुधार संबंधी प्रस्ताव प्रदेश के ऊर्जा मंत्री को सौंप दिया है। प्रस्ताव में कई बिदुओं पर सुधार की बात कही गई है। इसमें मानव शक्ति की कमी में भी सुधार की मांग की गई है। संघर्ष समिति ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि सभी घरों तक 24 घंटे गुणवत्तापूर्ण बिजली उपलब्ध कराने के लिए मैन, मटेरियल, मशीन एवं मनी की आवश्यकता के क्रम में सर्वाधिक महत्व मानव संसाधन का है। विगत सरकारों की त्रुटिपूर्ण नीति के चलते आवश्यकतानुसार विभिन्न स्तरों पर नये कार्मिकों, जूनियर इंजीनियरों एवं अभियंताओं की समुचित भर्ती नहीं हुई है।
1.2 लाख के सापेक्ष मात्र 40 हजार कर्मचारी वर्तमान में उप्र ऊर्जा के समस्त निगमों उत्पादन निगम, पावर कार्पोरेशन, पावर ट्रांसमिशन कार्पोरेशन एवं जलविद्युत निगम को मिलाकर स्वीकृत कुल पद 1.20 लाख के विरुद्ध मात्र लगभग 40 हजार नियमित कार्मिक ही कार्यरत है। समिति के अनुसार देश में सबसे ज्यादा उपभोक्ता उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में हैं। उत्तर प्रदेश में जहां 2.8 करोड़ उपभोक्ता हैं वहीं महाराष्ट्र में 2.7 करोड़ उपभोक्ता है। उत्तर प्रदेश में कार्मिकों के स्वीकृत पद के अनुसार 236 उपभोक्ताओं पर एक कर्मचारी है वहीं महाराष्ट्र में 207 उपभोक्ता पर एक कर्मचारी है। अगर कार्यरत कर्मचारियों की संख्या के लिहाज से देखा जाए तो खराब स्थिति का अंदाजा लगेगा। यूपी में कार्यरत कार्मिकों के लिहाज से 710 उपभोक्ता पर मात्र एक कार्मिक कार्यरत है। जबकि महाराष्ट्र में 298 उपभोक्ताओं पर ही एक कार्मिक कार्यरत है। समिति के संयोजक इ. शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि उपभोक्ताओं की बेहतर सेवा हेतु कार्मिकों के निर्धारित मानकों के क्रम में ऊर्जा निगमों में जनशक्ति की स्थिति दयनीय है।