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बेइंतेहां प्रेम का स्मारक है ये; लेकिन ताजमहल नहीं उससे भी 600 साल पुराना

सोनभद्र के मारकुंडी घाटी में बेइंतेहां प्रेम का स्मारक ताजमहल तो नहीं लेकिन उससे भी ज्यादा 600 साल पुराना है। यहां दो खंडों में विभक्त एक टीला वीर लोरिक की वीरता और अटूट प्रेम की निशानी है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 05 Jan 2018 06:01 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jan 2018 10:19 PM (IST)
बेइंतेहां प्रेम का स्मारक है ये; लेकिन ताजमहल नहीं उससे भी 600 साल पुराना
बेइंतेहां प्रेम का स्मारक है ये; लेकिन ताजमहल नहीं उससे भी 600 साल पुराना

सोनभद्र (जेएनएन)। सोनभद्र में मौजूद वीर लोरिक काल की निशानियां उसकी वीरता की कहानी कहती हैं लेकिन वह सच्चाई के कितने करीब है इसके कई प्रमाण इतिहास में ही दफन होकर रह गए हैं। बावजूद इसके बताने के लिए बहुत कुछ ऐसा है जिसे वीर लोरिक के कालखंड का कहा जा सकता है। जिला मुख्यालय से मात्र छह किमी की दूरी पर मारकुंडी घाटी में एक पत्थर का टीला जो दो खंडों में विभक्त है, यह अटूट प्रेम की निशानी का आज भी गवाही देता है।

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मान्यता यह है कि दो खंडों वाला टीला वीर लोरिक की वीरता का प्रतीक भी है जिसके तलवार की धार ने उसे दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया। वैसे, इतिहास के पन्नों में दर्ज वीर लोरिक बलिया जिला के फेफना के पास गौरा के निवासी हैं। वीर लोरिक के विविध पक्षों का जिक्र लोक साहित्यकार डा. अर्जुन दास केसरी ने अपनी कृति लोरिकायन में भी किया है।

संस्कृत की मशहूर कृति मृच्छ्कटिकम का प्रेरणास्रोत लोरिकी (लोरिकायन) ही माना जाता है। इसके साथ ही पंडित जवाहरलाल  नेहरू ने भी डिस्कवरी आफ इंडिया में लोरिकी का उल्लेख किया है। पश्चिमी विद्वानों में बेवर, बरनाफ, जार्ज ग्रियर्सन आदि ने भी लोरिकी पर काफी कुछ लिखा है।

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दसवीं शताब्दी का इतिहास गौरव गाथा से भरा पड़ा है। ऐसी दौर में बलिया जिले के गौरा गांव निवासी वीर लोरिक व मंजरी, चंदा के बीच प्रेम व उससे उभरे संघर्ष की दास्तां प्रस्तुत करता है। इसकी कथा एसएम पांडेय ने वीर लोरिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश की अहीर जाति की दंतकथा का एक दिव्य चरित्र के रूप में रचा है। इसमें विवाहित राजपूत राजकुमारी चंदा व एक अहीर लोरिक के प्रेम संबंधों के कारण पारिवारिक विरोध, सामाजिक तिरस्कार व लोरिक द्वारा उनका सामना करते हुये बच निकालने की घटनाओं के चारों तरफ घूमती है।

हिंदी साहित्य में भी प्रसिद्धि

हिन्दी के लोक साहित्य में भी लोरिक व चंदा की कथा का महत्वपूर्ण स्थान है। चंदायन के लेखक सूफी कवि मौलाना दाऊद ने 1379 में लोरिक और चंदा के लोक महाग्रंथ को चुना था। मौलाना का मानना था कि चंदायन एक दिव्य सत्य है। इस प्रेम पर अाधारित सत्‍यकथा के प्रमाण सोनभद्र की वादियों में आज भी मौजूद हैं और इस वीर से जुडे इतिहास को देखने दूर दूर से लोग बरबस खिंचे चले आते हैं। वीर लोरिक के समय में सोनभद्र जनपद के अगोरी किले के राजवंशों की दूर-दूर तक ख्याति थी। उस समय खरवार राजा काफी चर्चित थे। इसी में एक का नाम था राजा मोला भगत। किंवदंतियों के मुताबिक वह अत्याचारी स्वभाव का था। दरअसल, मंजरी जिसके घर का नाम चन्दा था, इससे वह प्रेम करता था। पिता मेहर को इसकी जानकारी हुई तो उन्‍होंने लोरिक से संपर्क किया और विवाह करने का प्रस्ताव दिया।

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रुधिरा नाले का जुड़ाव

विवाह के प्रस्‍ताव के बाद लोरिक बलिया से बारात लेकर यहां तह पहुंच गए। यहां आकर नाले के किनारे बारात रुक गई, मान्यता है कि अगोरी से निकलने वाला रुधिरा नाला अपने मूल नाम से बदलकर तब अस्तित्व में आया जब राजा और लोरिक के बीच यहां भीषण युद्ध हुआ। उस दौरान निकले रुधिर से नाले का रंग लाल हो गया था। तब से आज तक इसकी पहचान रुधिरा नाले के रुप में बरकरार है। इतिहास में वीरोचित अनेक पात्रों का वर्णन मिलता है। इसमें वीर लोरिक के किये कार्यों की किवंदतियां यहां आम हैं। ऐसे क्रम में जनपद के मारकुंडी में स्थित दो भागों में विभाजित शिलाखंड को देखने से होता है। मान्‍यता है कि प्रेमिका के प्रेम को अमिट बनाने के लिए वीर लोरिक से अखंड शिला को अपनी 85 मन की तलवार से दो भागों में विभाजित करने का वचन लिया। इसी पर वीर लोरिक ने अपने बाहुबल से प्रहार कर शिला को एक ही वार में दो टुकडों में काट डाला था। आज भी वह पत्थर का टुकडा अमर प्रेम की निशानी के तौर पर आदिवासियों के बीच पूजा जाता है।

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माप प्रणाली में मन की ताकत

भारतीय परंपरागत माप प्रणाली के अनुसार चालीस सेर का एक मन होता है। एक शेर कमोबेश एक किलों के बराबर होता है। अंतराष्ट्रीय माप प्रणाली में माप करके देखा जाए तो एक शेर 933 ग्राम होते हैं। यानी किलों से कुछ कम। इसका मतलब मन भी चालीस किलों से कुछ कम करीब 37.32 किलोंग्राम का होता है। इसको दूसरी तरह से भी समझ सकते हैं। एक किलो में 86 तोला जबकि एक सेर में 80 तोला होते हैं। 


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