दादा से धैर्य व दादी से सीखी एकता की ताकत
सोनभद्र तवे पर सिकने वाली रोटियों की गिनती नहीं हो पाती लेकिन चूल्हा-चौका एक है तो स्वाद में मिठास के साथ अपनेपन का अहसास होता है। क्योंकि तीन पीढि़यों के 15 सदस्य यहां एक ही छत के नीचे बैठकर भोजन करते हैं। लॉकडाउन में तो बच्चे अपने दादा-दादी ताऊ-ताई से एकता की ताकत के बारे में सीखे हैं तो आपसी प्रेम और भी प्रगाढ़ हुआ है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : तवे की रोटियों की गिनती नहीं हो पाती लेकिन, चूल्हा-चौका एक है तो स्वाद में मिठास के साथ अपनेपन का अहसास होता है। क्योंकि तीन पीढि़यों के 15 सदस्य यहां एक ही छत के नीचे बैठकर भोजन करते हैं। लॉकडाउन में तो बच्चे अपने दादा-दादी, ताऊ-ताई से एकता की ताकत के बारे में सीखे हैं तो आपसी प्रेम और भी प्रगाढ़ हुआ है। प्रतिदिन जब सभी बच्चों को एक साथ बैठाकर दादा सुविचार सुनाते हैं और उस बीच दादी का का कटाक्ष करने वाला शब्द आता है तो बच्चे खुश भी होते हैं। यहीं वजह है कि यह परिवार उन लोगों के लिए नजीर है जो एकल परिवार के पीछे भागते हैं। जो बच्चे बाहर रहकर पढ़ाई करते हैं उन्होंने इस 50 दिनों में दादा से धैर्य तो दादी से एकता की असली ताकत को सीखा है।
बात हो रही है राबर्ट्सगंज नगर के दीप नगर में रहने वाले उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के जिलाध्यक्ष रतनलाल गर्ग के परिवार की। आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हर स्तर से मजबूत यह परिवार इस लॉकडाउन में कइयों को संदेश दे रहा है। इस परिवार में कुल तीन पीढ़ी के 15 सदस्य हैं। वैसे तो सभी कहीं न कहीं पढ़ाई, रोजगार में लगे रहते हैं लेकिन इन दिनों सप्ताह के तीन दिन एक साथ बीताते हैं। संयुक्त परिवार की ही ताकत है कि परिवार की एक बेटी डॉक्टर, एक बेटी आइआरएस हो चुकी है। बाकी बच्चे भी अच्छी शिक्षा ले रहे हैं। ऐसे रहता है परिवार
रतनलाल गर्ग और उनकी पत्नी अनारकली के तीन पुत्र हैं। नरेंद्र, कृष्ण कुमार और विनोद। वैसे तो शहर में तीन अलग-अलग स्थानों पर इनका घर है। लेकिन एकता इस कदर है कि सप्ताह में तीन दिन परिवार के लोक इकट्ठा जरूर होते हैं। नरेंद्र और उनकी पत्नी के तीन बच्चे निधि, निकिता और नैतिक हैं। निधि डॉक्टर है, इसकी शादी भी हो चुकी है। निकिता दिल्ली व नैतिक वाराणसी में तैयार करता है। दूसरे पुत्र कृष्ण कुमार व उनकी पत्नी की पुत्री साक्षी गर्ग जो आइआरएस ै, बेटा दिल्ली में तैयारी करता है। छोटे पुत्र विनोद की पुत्री तनीषा व पुत्र तनीष भी वाराणसी में रहकर पढ़ते हैं। इन सभी समय घर पर ही हैं। तीनों बहुएं अनिता, मंजू और रेनू में पहले की अपेक्षा प्रेम बढ़ा है। 50 दिनों में किसने क्या सीखा
मैं वाराणसी में रहकर पढ़ाई करती हूं। होली पर घर आई थी, उसके बाद ही लॉकडाउन हो गया। इतने दिनों से घर में रहकर अपनी दादी से एकता की असली ताकत को सीखा है। कैसे सबको साथ लेकर चलना चाहिए यह इनसे सीखने को मिला। साथ ही ताई लोगों से आपसी प्रेम सीखा।
- तनीषा गर्ग, कक्षा-12 मैं दिल्ली में रहकर संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करता हूं। होली पर घर आया। कुछ दूर रूका तभी लॉकडाउन लग गया। तब से अब तक अपने दादा से धैर्य सीखा। उन्होंने बताया कि धैर्य रखने वाले व्यक्ति को सदैव सफलता मिलती है। मुझे भी सफलता मिलेगी ऐसा विश्वास है।
- अभिषेक गर्ग आपस में मिलकर रहना चाहिए, किसी से झगड़ा नहीं करना चाहिए। अपने से छोटे को प्यार देना चाहिए। बड़े की बात सदैव माननी चाहिए। हमारे दादा कहते हैं कि दूसरे की मदद करने वाले की मदद भगवान करते हैं।
- नैतिक गर्ग, कक्षा-9 कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमारी बड़ी बहन साक्षी गर्ग और निधि गर्ग ने मेहनत और लगन से ही सफलता पाई। यह हम लोग उनसे सीखे हैं। हम भी पूरी लगन से मेहनत करेंगे और सफलता पाएंगे।
- संकेत गर्ग, कक्षा-10 हमारे पिता जी हम तीनों भाइयों को अपने कारोबार के बारे में प्रतिदिन कुछ न कुछ जरूर बताते हैं। उन्होंने इस 50 दिन में हम सभी को अपने संघर्ष की कहानी बताया है। वह वाकई बहुत मेहनत किए। उनका अनुभव ही हमारे परिवार को आगे बढ़ा रहा है।
नरेंद्र गर्ग, बड़े पुत्र वैसे तो हम लोग पहले से ही संयुक्त परिवार में रह रहे हैं। इस लॉकडाउन में हम तीनों बहुएं जब इकट्ठा हुईं तो खूब पकवान बनाया। साथ ही अम्मा से सबको साथ लेकर चलने वाले तरीकों को जाना। कैसे एक दूसरे को मिलाकर चलते हैं इस बारे में उन्होंने अपना अनुभव साझा किया।
- अनीता गर्ग, छोटी बहू आज लोग एकल परिवार की ओर भाग रहे हैं। परिवार की परिभाषा हर कोई पति-पत्नी व बच्चे तक मान रहा है लेकिन, यह सच नहीं है। असली परिवार संयुक्त ही है। एकता में ताकत होती है। अगर परिवार के सदस्य एकजुट होकर रहें तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी हल की जा सकती है।
- रतनलाल गर्ग, मुखिया