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खनन क्षेत्र की बंदी से होली हुई बेरंग

बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में रविवार का बड़ा महत्व रहा है। रविवार को ही 50 हजार से ज्यादा मजदूरों को जहां मजदूरी मिलती थी वहीं मजदूर रविवार को ही अपनी साप्ताहिक खरीदारी करता था।

By JagranEdited By: Published: Mon, 09 Mar 2020 04:19 PM (IST)Updated: Mon, 09 Mar 2020 04:19 PM (IST)
खनन क्षेत्र की बंदी से होली हुई बेरंग
खनन क्षेत्र की बंदी से होली हुई बेरंग

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : बिल्ली मारकुंडी  खनन  क्षेत्र  में रविवार का बड़ा महत्व रहा है। रविवार को ही 50 हजार से ज्यादा मजदूरों को जहां मजदूरी मिलती थी वहीं मजदूर रविवार को ही अपनी साप्ताहिक खरीदारी करता था। लेकिन रविवार अब ज्यादा रौनक भरा नहीं रह गया है। ओबरा, डाला, चोपन सहित ग्रामीण अंचलों के एक दर्जन बाजारों में खरीदारी काफी कम हो गई है। होली से पहले अंतिम रविवार को तमाम बाजारों में खनन मजदूर न के बराबर दिखाई पड़े।  तमाम तकनीकि झंझावतों में फंसे बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र की  होली  पुन:  बेरंग  होते दिख रही है। धारा 20 के प्रकाशन नहीं होने के कारण बंद पड़ी खदानों के पुन: चालू होने की राह देख रहे खदान मालिकों सहित 50 हजार से ज्यादा मजदूरों के लिए होली ज्यादा ़खुशी भरा नही रहा । बंद दर्जनों खदानों को पुन: चालू करने के आदेश में धारा 20 के प्रकाशन का अडंगा भारी साबित हो रहा है। 12 मई 2017 को उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के बाद से ही बिल्ली मारकुंडी की 32 खदानें बंद हैं। इनमें कई खदानों की अब बंदी हालत में ही लीज सीमा भी पूरी हो चुकी है। वर्ष 2017 में बंद हुई 32 खदानों के साथ वर्ष 2018 में एनजीटी के आदेश से 29 और खदानें बंद हो गई। बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में 90 फीसद काम ठप होने के कारण जनपद के चोपन, नगवां, चतरा, म्योरपुर और बभनी ब्लाक सहित मध्य प्रदेश, झारखंड के सीमावर्ती जनपदों के  मजदूरों के सामने भारी संकट पैदा किया है। समस्या की मुख्य जड़ धारा 20 के प्रकाशन में हो  रही  देरी के साथ प्रशासनिक सुस्ती के कारण आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक संकट ने तेजी से दस्तक दी है।

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बाजारों में दिखा असर 

भौगोलिक रूप से पठारी बाहुल्य क्षेत्र के तौर पर सोनभद्र के बड़े भूभाग में खेती ज्यादा अपेक्षित नहीं रही है। जलस्तर के काफी नीचे होने के साथ सिचाई के साधनों की कमी के कारण यहां खेती कभी भी बड़े आर्थिक उपार्जन का विषय नहीं रहा। सोनभद्र सहित आसपास के आधा दर्जन पठारी बाहुल्य जनपदों की लाखों आबादी के लिए पत्थर और बालू खनन ही रोजगार का प्रमुख केंद्र रहा है। खनन क्षेत्रों की गतिशीलता का सीधा असर जनपद के बाजार पर पड़ता रहा है। चोपन, डाला, राब‌र्ट्सगंज, रेणुकूट, दुद्धी, अनपरा आदि प्रमुख बाजारों पर खनन क्षेत्र का व्यापक असर रहा है। लेकिन खनन क्षेत्र में बंदी के बने हालात ने तमाम बाजारों की रौनक को खत्म कर दिया है।यही नही ग्रामीण अंचलों में बेलगढ़ी, हसरा, कनहरा, पनारी, तेलगुड़वा, गुरुमुरा, जुगैल, भरहरी, बाड़ी, कोटा, परसोई आदि जगहों पर लगने वाली साप्ताहिक बाजारों में कारोबार में भारी कमी आई है। 


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