हाथियों का उत्पात, 'एलिफेंट कारिडोर' में हो सुधार तो बने बात
हाथियों के परंपरागत बनाए मार्ग पर आबाद उत्तर प्रदेश झारखंड व छत्तीसगढ़ के इलाकों में अक्टूबर से लेकर जनवरी तक उनका आतंक मचा रहता है। वे इसी रास्ते का प्रयोग कर हाथी सदियों से बंगाल एवं ओड़िसा के जंगलों तक आवाजाही करते रहे हैं लेकिन राज्य एवं केंद्र सरकार की ओर उनके संरक्षण के लिए अब तक कोई विशेष कार्य योजना नहीं बनाई है।
जागरण संवाददाता, दुद्धी (सोनभद्र) : हाथियों के परंपरागत बनाए मार्ग पर आबाद उत्तर प्रदेश, झारखंड व छत्तीसगढ़ के इलाकों में अक्टूबर से लेकर जनवरी तक उनका आतंक मचा रहता है। वे इसी रास्ते का प्रयोग कर हाथी सदियों से बंगाल एवं ओड़िसा के जंगलों तक आवाजाही करते रहे हैं, लेकिन राज्य एवं केंद्र सरकार की ओर उनके संरक्षण के लिए अब तक कोई विशेष कार्य योजना नहीं बनाई है। इस कारण उनके रास्ते में आने वाली लाखों की आबादी को प्रतिवर्ष जान-माल की क्षति उठानी पड़ती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक हाथी एक ऐसी प्रजाति है, जो सैकड़ों वर्ष पूर्व अपने पूर्वजों के बनाए गए मार्ग का सूंघ कर पता लगा लेते हैं। यही कारण है कि वे जब पूर्वजों के बनाए लीक पकड़ कर समूह में आगे बढ़ते हैं और रास्ते में पड़ने वाले अवरोध को तहस-नहस करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं। कई की जा चुकी है जान, हुई है आर्थिक क्षति भी
बीते एक दशक का आंकड़ा देखा जाए तो अकेले दुद्धी तहसील क्षेत्र के बभनी, म्योरपुर, विढमगंज, बीजपुर एवं दुद्धी क्षेत्र के करीब तीन दर्जन से अधिक गांवों में हाथियों का आतंक देखने को मिला है, जिसमें भारी जनहानि के साथ ही दर्जनों घर बर्बाद हुए हैं। इस आंकड़े में छत्तीसगढ़ एवं झारखंड को शामिल कर दिया जाए तो आंकड़ा सैकड़ों को पार कर जाएगी।
हाथी गलियारों की स्थिति खराब
हाथियों के संरक्षण के लिए कार्य करने वाली राष्ट्रव्यापी एक निजी संस्था की ओर से कराए गए हालिया सर्वेक्षण रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि देश के 12 राज्यों में हाथियों के लिए मौजूदा 101 गलियारों में से 96 गलियारों को एक साथ सुरक्षित किए जाने का प्रावधान किया गया है। इसको अमली जामा नहीं पहनाया गया। सर्वे में पाया गया कि देश के उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड समेत सात राज्यों में हाथी गलियारों (एलिफेंट कारिडोर) की स्थिति बेहद खराब है।
भटके हाथियों को राह दिखाने के लिए लगाए गए कर्मी
प्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन मिश्रा ने बताया कि इस क्षेत्र में अक्सर सर्दियों के मौसम में हाथियों का कोई न कोई झुंड भटक कर दूसरे राज्यों से आ जाता है। इसके लिए बार्डर से सटे इलाके के वन कर्मियों को सावधानी बरतने के लिए निर्देशित किया जा चुका है।