मनरेगा घोटाले के आरोपितों की संपत्ति पर ईडी की नजर
तत्कालीन बसपा के शासनकाल में वर्ष 2007 से लेकर 2010 तक के बीच महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत कराये जाने वाले कार्यों में जमकर घोटाला किया गया। अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों, सप्लायरों व ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधियों ने भी घोटाले में हाथ बंटाया। मामला तब उठा जब मामले की शिकायत हुई। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना के आधार पर खुलासा हुआ कि सोनभद्र समेत प्रदेश के सात जिलों में घोटाला किया गया है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : बसपा के शासनकाल में वर्ष 2007 से लेकर 2010 तक के बीच महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत कराए जाने वाले कार्यों में जमकर घोटाला किया गया। अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों, सप्लायरों व ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधियों ने भी घोटाले में हाथ बंटाया। मामला तब उठा जब मामले की शिकायत हुई। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना के आधार पर खुलासा हुआ कि सोनभद्र समेत प्रदेश के सात जिलों में घोटाला किया गया है।
अकेले सोनभद्र में करीब तीन सौ करोड़ रुपये के घोटाले का मामला सामने आया। बाद में न्यायालय के आदेश पर सीबीआइ मामले की जांच करने लगी। उसने करीब सौ से अधिक लोगों को इसमें आरोपित बनाया। कई आरोपितों की गिरफ्तारी हुई तो कई को तलब किया गया। हालांकि अभी जांच चल ही रही है। इसी बीच घोटाले के आरोपितों पर प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी ने भी नजर गड़ा दी है। घोटाले के आरोपितों को चिन्हित कर ईडी उनकी संपत्ति की जांच करा रही है। ऐसे में यह आशंका जतायी जा रही है कि जल्द ही रिकवरी व आय से अधिक संपत्ति बनाने वाले ऐसे लोगों की संपत्ति जब्त भी होगी।
बता दें कि वर्ष 2007 से लेकर 2010 के बीच मनरेगा योजना के तहत कराए गए कार्यों में जमकर धांधली की गई। इसकी वर्ष 2014 में उच्च न्यायालय के आदेश पर इस घोटाले की जांच सीबीाआइ ने करना शुरू कर दिया। जांच क्रमवार चलती रही और आरोपितों को सीबीआइ की विशेष अदालत में तलब किया जाता रहा। कुछ आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया। बाद में वे जमानत पर रिहा हुए। सूत्रों की मानें तो इसी बीच ईडी ने घोटालेबाजों पर नजर गड़ा दिया। ईडी की टीम घोटालेबाजों, उनके रिश्तेदारों के नाम से वर्ष 2006 से लेकर अब तक खरीदी और बेची गई संपत्ति का ब्यौरा जुटाना शुरू कर दिया है। जिले के एक पूर्व ब्लाक प्रमुख के परिवार की संपत्ति का ब्यौरा ईडी ने वाराणसी के डीएम ने मांगा है। यह जानकारी लगते ही घोटाले के आरोपितों के हाथ-पांव फूलने लगे हैं। किस तरह से किया गया घोटाला
वर्ष 2007 से लेकर 2010 तक के बीच मनरेगा योजना के तहत चेकडैम, सड़क, बंधी का निर्माण कराया गया। वहां काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को खिलौना भी देना था। उसमें भी खेल किया गया गया। आरोप लगा कि सभी कार्यों को कराने में फर्जी भुगतान किया गया। इसके अलावा इस योजना के तहत कंप्यूटर, ¨प्रटर, कैमरा, खिलौना आदि सामग्री को खरीदने में बाजार मूल्य से काफी ज्यादा रुपये का भुगतान किया गया। सड़क निर्माण सामग्री में काफी ज्यादा भुगतान किया गया। इस तरह जिले स्तर के अधिकारियों, कर्मचारियों, ग्राम प्रधानों, ग्राम पंचायत अधिकारियों व सप्लायरों की मिलीभगत से खेल हुआ। कैसे हुआ घोटाले का पर्दाफाश
मनरेगा घोटाले का खुलासा करने में सबसे बड़ा योगदान अगर रहा तो वह सूचना अधिकार अधिनियम का। इसके तहत मिली सूचना के आधार पर पता चला कि मनरेगा के तहत कराये जाने वाले कार्यों में बड़ा खेल किया गया। फिर मामले की शिकायत होने पर मनरेगा के सदस्य संजय दीक्षित ने जांच की। जांच टीम ने भी माना कि घोटाला किया गया है। इसी आधार पर उच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 में सीबीआइ जांच के आदेश दिए। जांच में करीब तीन सौ करोड़ रुपये के घोटाले का मामला प्रकाश में आया।