दिव्य होती है गुरु की उदारता
गुरु के सम्मान शाश्वत सुख की अनुभूति का महान पानव पर्व गुरु
जागरण संवाददाता, अनपरा (सोनभद्र) : गुरु के सम्मान, शाश्वत सुख की अनुभूति का महान पानव पर्व गुरु पूर्णिमा आज परंपरागत ढंग से हर्षोल्लास पूर्वक मनाई जाएगी।
विदित हो कि हिदू धर्म में साल के पहले पर्व के रूप में गुरु पूर्णिमा पर्व की मान्यता हैं। भारतीय संस्कृति के सभी पर्वो का यह सरताज हैं। इसी पर्व को मनाने के साथ ही अन्य पर्वो का सिलसिला शुरू हो जाता हैं। गुरु पूर्णिमा पर्व की पूर्व संध्या पर अध्यात्म क्षेत्र के विद्वान डा. लक्ष्मीनाराण चौबे जी महाराज ने कहा कि भगवान वेदव्यास जी का जन्म आज ही के दिन हुआ था, जिससे इस पर्व को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
महाराज जी ने कहा कि परमात्मा की उपासना से कहीं अधिक फल गुरु की उपासना में मिलता है। गुरु की उदारता दिव्य होती है। तथा उनके स्वर में शाश्वत प्राण की अनुभूति मिलती है। गुरु चरणों की धूल संजीवनी बूटी की चूर्ण है। इससे सारे भव, रोग स्वत: नष्ट हो जाते हैं। बगैर गुरु कृपा के इस संसार रूपी सघन अरण्य को पार कर पाना असंभव हैं। जो शिष्य गुरुज्ञान को अपने आचरण में उतार लेता है, उसका जीवन महक उठता है। उन्होंने कहा कि गुरु का अर्थ ही अंधकार से प्रकाश यानि अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने वाला है। यह गुरु पूर्णिमा का पर्व लौकिक, दैविक, और आध्यात्मिकता उन्नति का पर्व है। गुरुजनों का अभिवादन और सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल सदा बढ़ते रहते है। हमें आज के दिन समर्पित होकर श्रद्वा व आस्था पूर्वक अपने गुरु का दर्शन, पूजन, अर्चन व सम्मान करना चाहिए। क्योंकि गुरु ईश्वर से पृथक नही हैं। गुरु ही मानव जीवन का एकमात्र आधार है। बहरहाल ऊर्जांचल के अधिकांशत: घरो में कलश स्थापना व अन्य गुरु पूजा की तैयारिया की गई हैं। बहुतेरे लोग दूर-दराज में रह रहे गुरु आश्रमों में दर्शन-पूजन की तैयारी किए हुए थे। लेकिन वहां से कोविड काल का हवाला देकर घरों में ही पूजन करने का निर्देश मिलने से वे मायूस हैं।