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लोकवार्ता शोध संस्थान की लाइब्रेरी से गहरा जुड़ाव

अस्सी वर्षीय वरिष्ठ साहित्यकार डा. अर्जुनदास केशरी द्वारा संचालित लोकवार्ता शोध संस्थान की लाइब्रेरी महज लाइब्रेरी ही नहीं बल्कि पुस्तक प्रेमियों के लिए जन्नत है। 1965 से अब तक इन्होंने इसे संभाल कर रखा है। करीब चार हजार किताबों वाली इस लाइब्रेरी में लोक साहित्य व जनजातिय साहित्य की महत्वपूर्ण किताबों का संसर है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 05:42 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 09:25 PM (IST)
लोकवार्ता शोध संस्थान की लाइब्रेरी से गहरा जुड़ाव
लोकवार्ता शोध संस्थान की लाइब्रेरी से गहरा जुड़ाव

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : अस्सी वर्षीय वरिष्ठ साहित्यकार डा. अर्जुनदास केशरी द्वारा संचालित लोकवार्ता शोध संस्थान की लाइब्रेरी महज लाइब्रेरी ही नहीं बल्कि पुस्तक प्रेमियों के लिए जन्नत भी है। 1965 से अब तक इन्होंने इसे संभाल कर रखा है। करीब चार हजार किताबों वाली इस लाइब्रेरी में लोक साहित्य व जनजातीय साहित्य की महत्वपूर्ण किताबों का संसार है। इन्हीं किताबों की मदद से करीब एक दर्जन शोध छात्र अपने ज्ञान को बढ़ाकर शोध कर चुके हैं।

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डा. केशरी बताते हैं कि 1965 में सबसे पहले जब उन्होंने लेखन शुरू किया तो उस समय जिले में कोई लाइब्रेरी नहीं थी। ऐसे में लिखते-लिखते उन्हें लगा कि यहां एक लाइब्रेरी होनी चाहिए। फिर क्या कुछ अपनी किताबों के सहारे ही अपने ही घर के एक कमरे में लाइब्रेरी खोल दिया। उस समय पुस्तक प्रेमियों की संख्या भी काफी ज्यादा हुआ करती थी। लोगों का रूझान और किताबों से जुड़ाव देखकर लगा कि कुछ और करने की जरूरत है। ऐसे में अपनी आय का कुछ अंश इस लाइब्रेरी के लिए निकालना शुरू किया। जहां भी मैं जाता वहां के बुक स्टाल से सस्ती और महत्वपूर्ण किताबें खरीद कर लाता। इस तरह से लाइब्रेरी में किताबों की संख्या बढ़ने लगी और पढ़ने वालों की भी। उस समय प्रतिदिन 30 से 35 लोग आते थे। धीरे-धीरे करके करीब चार हजार से अधिक किताबों की लाइब्रेरी तैयार हो गई। इसमें कुछ किताबें शासन से भी मिलीं। कुछ लाइब्रेरी आदि से भी मिली लेकिन अब कहीं से कोई मदद नहीं मिलती। अब तो किताब पढ़ने वालों की संख्या भी न के बराबर हो गई है। यदा-कदा ही लोग आते हैं। साठ से अधिक खुद की लिखी किताब

लोकवार्ता शोध संस्थान की तरफ से संचालित होने वाली इस लाइब्रेरी में वैसे तो चार हजार से अधिक महत्वपूर्ण किताबों का संसार है लेकिन डा. अर्जुन दास केशरी द्वारा लिखी गई करीब साठ से अधिक पुस्तकें हैं। इनमें ज्यादातर पुस्तकें लोक साहित्य एवं जनजातीय साहित्य पर लिखी गई हैं। डा. केशरी बताते हैं कि इसके अलावा अन्य कई ऐसी किताबें हैं जो आज बड़ी मुश्किल से मिलती हैं। कुछ ऐसी पत्र-पत्रिकाएं जिनके महत्वपूर्ण अंक आज कहीं नहीं मिलते वे यहां की लाइब्रेरी में हैं। दूर-दूराज से आते हैं शोध के छात्र

लोक साहित्य हो या फिर जनजातीय समाज के रहन-सहन, उनका साहित्य। अगर इस तरह का कोई विषय किसी शोध छात्र को मिलता है तो वह जिले में जरूर आता है। ..क्योंकि सोनभद्र जिला सूबे की सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या वाला जिला है। यहां आने के बाद शोध छात्र डा. अर्जुन दास केशरी के लोकवार्ता शोध संस्थान में जरूर जाते हैं। अब तक करीब एक दर्जन छात्र यहां से अपने ज्ञान को बढ़ाकर शोध कर चुके हैं।


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