मतदान केंद्रों तक पहुंचने में भी है संकट
जिला निर्वाचन विभाग इस बार मतदान स्थलों पर भले ही मतदाताओं के राहत के लिए कई व्यवस्थाएं कर रहा हैलेकिन रेनुकापार के दुर्गम 50 से ज्यादा टोलों के मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक पहुंचना ही बड़ी चुनौती रहेगा।
जासं, ओबरा (सोनभद्र) : जिला निर्वाचन विभाग इस बार मतदान स्थलों पर भले ही मतदाताओं के राहत के लिए कई व्यवस्थाएं कर रहा है, लेकिन रेणुकापार के दुर्गम 50 से ज्यादा टोलों के मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक पहुंचना ही बड़ी चुनौती होगी। अत्यंत दुर्गमता के साथ परिवहन और सड़कों की कमी के कारण प्रशासन द्वारा तय 75 फीसद मतदान का लक्ष्य पूरा करने में दिक्कतें पेश आ सकती हैं।
रेणुकापार के 90 फीसद से ज्यादा क्षेत्रों में पहाड़ी-नदी नाले मौजूद हैं। अभी भी 50 से ज्यादा टोलों तक सड़क मार्ग नहीं है। इस कारण आदिवासी क्षेत्र के मतदाताओं को मतदान स्थल जाने के लिए अमूमन पैदल ही सफर करना पड़ता है। रेणुकापर के जुगैल, पनारी, बैरपुर, कनहरा, परसोई, कनहरा सहित दर्जनों ग्राम पंचायतों के सैकड़ों गांव का मतदान स्थल पांच से दस किमी के दूर है। जुगैल ग्रामसभा के करवानिया और नौडीहवा का मतदान स्थल दस से 12 किमी दूर भीतरी में, पनारी ग्रामसभा के अमर स्त्रोता का दस किमी दूर खैराही में मतदान स्थल है। इसी तरह पनारी ग्राम पंचायत के बभनी, पल्सो, शिउर, कर्री, भोड़ार, बकिया, धनबहवा, छत्तादाड, अदराकुदर, चालाकी सहित कई दर्जन गांवों का मतदान स्थल सात किमी से ज्यादा दूर है। जुगैल ग्राम पंचायत के हसरा और चकरा के मतदाताओं आठ किमी से ज्यादा दूर बेलगढ़ी, चाडम के लोगों को छह किमी दूर भीतरी जाना पड़ता है। आवागमन के लिए साधनों की दरकार
मतदान केंद्रों पर प्रशासन द्वारा किये जाने कई राहत वाली व्यवस्थाओं के बावजूद मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक लाने की सुविधा की दरकार है। इन सभी दुर्गम टोलों से उनके तय मतदान केंद्र तक जाने के लिए उचित मार्ग और परिवहन की अपेक्षित व्यवस्था नहीं है। हालत यह है कि इन दुर्गम टोलों के मतदाताओं को राजनीतिक दल भी अपने साधनों से मतदान केंद्र तक लाने में परहेज करते हैं। रेणुका पार के में कड़िया-परसोई, महलपुर-भरहरी, फफराकुंड-सेमरतर, चौरा-कुड़ारी मार्ग पर तो कुछ साधन मिल भी जाते हैं लेकिन तीन दर्जन से ज्यादा ऐसे मार्ग हैं जिन पर निरंतर साधन नहीं मिलते हैं। जिसके कारण मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पैदल जाना मजबूरी बन जाता है। खासकर मार्गों की कमी और पहले से मौजूद मार्गों की खस्ता हालत भी मतदाताओं को भारी कष्ट देती है।
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