ब्रिज लिकेज के लिए कोल इंडिया की सहायक कंपनियों से होगा करार
उत्तर प्रदेश उत्पादन निगम के निदेशक मंडल ने झारखंड के सहरपुर जमर पानी कोल ब्लॉक के आवंटित ब्रिज लिकेज के लिए कोल इंडिया के सहायक कम्पनियों से एमओयू हस्ताक्षरित करने का अनुमोदन किया है। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच कोयला आपूर्ति की अद
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : उत्तर प्रदेश उत्पादन निगम के निदेशक मंडल ने झारखंड के सहरपुर जमर पानी कोल ब्लॉक के आवंटित ब्रिज लिकेज के लिए कोल इंडिया के सहायक कंपनियों से एमओयू हस्ताक्षरित करने का अनुमोदन किया है। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच कोयला आपूर्ति की अदला-बदली के लिए कोल स्वैपिग की नीति बनाई है। इस कदम से ईंधन की उपलब्धता बढ़ने की संभावना है और साथ ही परिवहन लागत कम होगी। सबसे ज्यादा सहूलियत ऐसी परियोजनाओं को होगा जहां से कोयला खदानें दूर हैं। फिलहाल कई इकाइयों के निर्माण पूरा होने में दो वर्ष से भी कम समय शेष है, जिसको देखते हुए उत्पादन निगम ब्रिज लिकेज बनाने की दिशा में काम कर रहा है। अगर झारखंड में आवंटित कोल ब्लाक से अपेक्षित समय पर उत्पादन नहीं शुरू हुआ तो ब्रिज लिकेज के माध्यम से नई इकाइयों को कोयला प्राप्त हो सकेगा। उत्पादन निगम के निदेशक मंडल ने कोल इंडिया की सहायक कम्पनियों सीसीएल, ईसीएल एवं एनसीएल से अनुबंध हस्ताक्षर के लिए मुख्य अभियंता (ईंधन) को अधिकृत किया है। उत्पादन निगम द्वारा वर्तमान में छह हजार मेगावाट से ज्यादा क्षमता की नई इकाइयों का निर्माण कराया जा रहा है, जिसमें ओबरा तापीय परियोजना के विस्तारीकरण के तहत ओबरा-सी (23660 मेगावाट), हरदुआगंज (13660 मेगावाट), करछना (23660 मेगावाट) और जवाहरपुर (23660 मेगावाट) की इकाइयों की स्थापना का कार्य शुरू हो चुका है। इन नई इकाइयों में सोनभद्र की ओबरा सी, हरदुआगंज की विस्तारीकरण इकाई, जवाहरपुर परियोजना एवं पनकी की इकाइयों को कोयला झारखंड के जमरपानी कोल ब्लाक से मिलेगा। कोल स्वैपिग से होगा लाभ
केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच कोयला आपूर्ति की अदला-बदली के लिए कोल स्वैपिग की नीति बनायी है। इस कदम से ईंधन की उपलब्धता बढ़ने की संभावना है और साथ ही परिवहन लागत कम होगी। सबसे ज्यादा सहूलियत ऐसी परियोजनाओं को होगा जहां से कोयला खदानें दूर हैं। कोल-स्वैपिग की नीति अगर प्रदेश में भी लागू होती है तो इसके तहत कोयला खदानों से दूर के बिजली घरों को अधिक कैलोरिफिक वैल्यू के सस्ते कोयला खदानों से कोयला स्वैप करने की अनुमति मिल जायेगी। इससे बिजली के दाम में कमी आ सकती है।
कई परियोजनाओं को हो सकता है लाभ कोल स्वैपिग की नीति अगर धरातल पर आई तो उत्तर प्रदेश उत्पादन निगम सहित प्रदेश के दर्जनों निजी बिजली घरों को बड़ा लाभ होगा। खासकर मध्य और पश्चिम उत्तर प्रदेश में मौजूद बिजली घरों को इसका लाभ होगा। उत्पादन निगम के परीछा, पनकी एवं हरदुआगंज, एनटीपीसी के ऊंचाहार व टांडा सहित निजी क्षेत्र की दर्जनों इकाइयां कोयला खदानों से काफी दूर हैं। इनमें ज्यादातर बिजलीघरों में बिजली की लागत चार से पांच रुपये प्रति यूनिट तक पड़ती है। वहीं कोयले की खदानों के पास स्थित सोनभद्र के बिजली घरों में बिजली की लागत तीन रुपये प्रति यूनिट से कम रहती है। ऐसे में कोल स्वैपिग नीति से कई बिजलीघरों को फायदा हो सकता है। उत्पादन निगम के अंतर्गत बन रही नयी इकाइयां भी जमरपानी से काफी दूर हैं, जबकि इन परियोजनाओं से जमरपानी की अपेक्षा काफी कम दूरी पर भी कोयला खदानें मौजूद हैं। ऐसे में अगर कोल स्वैपिग नीति प्रदेश में लागू होती है तो इन बिजलीघरों को पास के कोयला खदानों से कोयला मिल सकेगा, जिसका सीधा असर बिजली की लागत पर पड़ेगा ।