मधुमेह व कैंसर बीमारियों में उपयोगी है काला चावल
जागरण संवाददाता शाहगंज (सोनभद्र) काला चावल खाना सेहत के लिए फायदेमंद है। उसके औषधीय गुणों की जानकारी तमाम लोगों को नहीं है लेकिन खुशबू से लबरेज यह चावल स्वास्थ्य का खजाना भी है। घोरावल ब्लाक के बरसोत गांव निवासी प्रगतिशील किसान विकास सिंह ने काले चावल की विशेष प्रजाति की खेती ऑर्गेनिक विधि से की है।
शाहगंज (सोनभद्र) : काला चावल खाना सेहत के लिए फायदेमंद है। उसके औषधीय गुणों की जानकारी तमाम लोगों को नहीं है लेकिन खुशबू से लबरेज यह चावल स्वास्थ्य का खजाना भी है। घोरावल ब्लाक के बरसोत गांव निवासी प्रगतिशील किसान विकास सिंह ने काले चावल की विशेष प्रजाति की खेती ऑर्गेनिक विधि से की है। अन्य चावलों की अपेक्षा काफी महंगा बिकने वाले इस चावल से अभी लोग अनजान हैं लेकिन शहर में जीवन यापन करने वाले उक्त किसान ने गांव में आकर खेती को एक नया रूप दिया है।
किसान ने इंटरनेट पर काले चावल के लिए धान की खेती के बारे में पढ़ा। शुगर फ्री इस चावल के बीज काफी महंगे थे। किसान ने चार सौ रुपये प्रति किलो ऑनलाइन ही इस बीज की खरीदारी की और तीन बीघा में इसकी रोपाई करके जैविक विधि से खेती की। तीन बीघे में प्रति बीघा दस क्विंटल की पैदावार हुई। बाजार में काला चावल की कीमत 250 से लेकर 500 रुपये प्रति किलो तक है। औषधीय गुणों से भरपूर इस चावल में खुशबू और स्वास्थ्य का खजाना है। इसकी खेती किसानों को अच्छी कमाई भी करा सकती है। इसकी खेती असम और मणिपुर के किसान काफी संख्या में करते हैं। चीन में भी इस चावल की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। पूर्व में चीन के एक छोटे से हिस्से में काला चावल की खेती की जाती थी और यह चावल सिर्फ और सिर्फ वहां के राजा के लिए हुआ करता था। काला धान की फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है। इसके पौधे आम धान के पौधे से बड़े होते हैं। यह धान कम पानी वाले जगह पर भी हो सकता है। स्वास्थ्य के लिए लाभदायक
कृषि वैज्ञानिक विनीत यादव के मुताबिक काला धान से निकले चावल में विटामिन बी, ई के अलावा कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन तथा प्रोटीन प्रचुर मात्रा में मिलता है। यह तत्व मानव शरीर में एंटी ऑक्सीडेंट का काम करते हैं। कैंसर एवं मधुमेह रोग में भी उपयोगी है। इसके सेवन से रक्त शुद्धिकरण भी होता है। चर्बी कम करने तथा पाचन शक्ति बढ़ाने में भी मददगार है। खेती के लिए इंटरनेट का लिया सहारा
बचपन से ही शहर में रहे लेकिन परिस्थितियां ऐसी आई कि गांव में आना पड़ा। खेती का कोई अनुभव नहीं था। जीव विज्ञान से इंटरमीडिएट की पढ़ाई वाराणसी में की और वहीं से बीएससी भी किया। शुरू में तो चार साल तक खेती के बारे में समझना पड़ा। संसाधन जुटाने पड़े। इसके लिए इंटरनेट का भी सहारा लिया और कुछ अलग खेती करने का मन बनाया। जिससे आय में भी बढ़ोतरी हो सके। खेत में ही तालाब खोदाई फर्म हाउस भी खोला।
- विकास सिंह, प्रगतिशील किसान।