लगभग दो करोड़ में हुआ था 148 बीघे भूमि का सौदा
घोरावल कोतवाली क्षेत्र के जिस उभ्भा गांव में जमीन विवाद के कारण नरसंहार हुआ उसके बार केवल सोनांचल या उत्तर प्रदेश से नहीं बल्कि दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों से भी जुड़े हैं। यहां करीब 14
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : घोरावल कोतवाली क्षेत्र के जिस उभ्भा गांव में भूमि विवाद के कारण नरसंहार हुआ उसका तार केवल सोनांचल या उत्तर प्रदेश से ही नहीं बल्कि दिल्ली और बिहार से भी जुड़ा है। यहां करीब 148 बीघा जमीन के चक्कर में भू-माफियाओं व अधिकारियों के दबाव में इतना बड़ा मामला खड़ा हो गया कि दस लोगों की जान चली गई। वह भी उस समय जब आदिवासियों ने मालिकाना हक लेने की कोशिश की तो ग्राम प्रधान ने ही नरसंहार करा दिया। करीब दो करोड़ रुपये की इस जमीन के मामले की अगर सही मायने में जांच हो तो कई अधिकारियों की गर्दन फंस सकती है।
सूत्रों के अनुसार जिस जमीन के लिए इतना बड़ा नरसंहार हुआ वह जमीन करीब दो करोड़ रुपये में एक आइएएस परिवार से ग्राम प्रधान ने खरीदी थी। गांव से जुड़े सूत्र बताते हैं कि मूर्तिया ग्राम पंचायत के उभ्भा में करीब 1940 से ही वहां के आदिवासी जमीन पर काबिज थे। वे जोताई-बोआई कर रहे थे। इसी बीच 17 दिसंबर 1955 को बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने एक आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर यहां की जमीन को सोसाइटी के नाम करा लिया। जबकि यह नियम विरुद्ध था। आरोप है कि महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा उस समय के तहसीलदार को प्रभाव में लेकर 639 बीघा जमीन सोसाइटी के नाम करा लिए। बाद में महेश्वरी ने अपने आइएएस दामाद के संपर्क से पुन: राबर्ट्सगंज के तहसीलदार को प्रभाव में लिया, और सोसाइटी की 37.022 हेक्टेयर यानि करीब 148 बीघा जमीन अपनी बेटी आशा मिश्रा पत्नी प्रभात कुमार मिश्र निवासी न्यू बेरिग कैनाल रोड पटना बिहार के नाम करा दिया। इतना ही नहीं इसी जमीन को बाद में आशा मिश्रा की पुत्री विनीता शर्मा उर्फ किरन कुमार पत्नी भानू प्रसाद (आइएएस) निवासी भागलपुर के नाम करा दिया गया। इसके बाद गांव के लोग जमीन पर जोताई-बोआई करते और जमीन में होने वाली ऊपज का पैसा आइएएस परिवार को पहुंचाते रहे। इसके बाद 17 अक्टूबर 2017 को किरन कुमार ने जमीन को गांव के प्रधान को बेच दिया। जमीन कितने में बेची गई यह तो पता नहीं चला लेकिन ग्रामीण लगभग दो करोड़ रुपये में सौदा होने की बात बता रहे हैं। इसका विरोध ग्रामीणों ने किया लेकिन ग्राम प्रधान के दबाव में रहा प्रशासनिक अमला सुना तक नहीं। अंतत: 27 फरवरी 2019 को जमीन की खारिज दाखिल भी हो गई। इसके बाद प्रधान उक्त जमीन पर अपना कब्जा करने की कोशिश शुरू कर दिया। सुने होते अधिकारी तो न होता नरसंहार
जिस तरह से घटना हुई और अभी तक की पड़ताल में जो बातें खुलकर सामने आईं उससे साफ है कि अगर राजस्व विभाग व पुलिस के लोग ग्रामीणों की सुने होते तो शायद इस तरह नरसंहार न होता। सूत्र बताते हैं कि जब जमीन का बैनामा हो रहा था तब भी ग्रामीण विरोध किए, खारिज दाखिल होने से पहले भी आपत्ति लगाई गई लेकिन राजस्व विभाग के अधिकारियों ने नियमों को दरकिनार करते हुए एकपक्षीय फैसला दे दिया। ऐसे में मामला बढ़ता ही गया। अंतत: स्थिति यहां तक पहुंच गई कि राजस्व विभाग आग लगाकर किनारे हो गया और नरसंहार जैसी घटना हो गई। यानि अगर ठीक से जांच हो जाए तो राजस्व विभाग के कई अधिकारियों का नपना तय है।