इसने-उसने कैसी चली चाल, नतीजा तय करेगा कद
परिणाम से तय होगा इनका कद लोकसभा चुनाव में कई दिग्गजों के बदल गए दल। परिणाम बताएगा कितना फायदेमंद साबित हुए ये।
गोविद मिश्र, सीतापुर : लोकसभा चुनाव का अहम पड़ाव मतदान अब हो चुका है। प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है। अब सभी की निगाहें परिणाम पर टिकी हुई हैं। इसके लिए थोड़ा इंतजार करना है। 23 मई को नतीजे आएंगे। ये काफी कुछ तय करेंगे। परिणाम न केवल प्रत्याशियों के लिए अहम होंगे, ये विधायकों की साख भी घटाएंगे-बढ़ाएंगे। यही नहीं, नए दल में अपनी ताकत दिखाने पहुंचे दिग्गजों का कद और उनके कॅरियर के आगे की राह भी यह तय करेंगे।
सबसे पहले बात प्रत्याशियों की कर लेते हैं। सीतापुर संसदीय सीट के लिए भाजपा से राजेश वर्मा, कांग्रेस से कैसरजहां और गठबंधन में बसपा के नकुल दुबे मैदान में हैं। राजेश वर्मा और कैसरजहां तो सीतापुर की 'सियासी पिच' के मिजाज से पहले से ही रूबरू थे। इस पिच पर नई पारी खेलने उतरे थे नकुल दुबे। अब इन तीनों में कौन जनता का चहेता बनेगा, यह तो वक्त बताएगा। खैर, जीत तो निश्चित तौर पर सभी को संजीवनी देगी लेकिन, इसमें समीकरण भी अहम भूमिका निभाएंगे।
दांव पर विधायकों की साख
सीतापुर संसदीय सीट में पांच विस क्षेत्र आते हैं। इनमें से चार पर भाजपा के विधायक हैं। सदर में राकेश राठौर, बिसवां में महेंद्र यादव, लहरपुर में सुनील वर्मा और सेउता में ज्ञान तिवारी। इसके अलावा महमूदाबाद सपा की झोली में है। इस पर विधायक नरेंद्र सिंह वर्मा हैं। अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में किस दल का परफारमेंस कैसा रहता है, यह देखने योग्य होगा। सबसे ज्यादा नजर तो भाजपा विधायकों के क्षेत्र पर ही रहेगी। इसके अलावा महमूदाबाद में भाजपा, गठबंधन और कांग्रेस को मतदाताओं को कितना प्यार मिलेगा, यह भी दिलचस्प होगा। इनका कद तय करेंगे परिणाम
रामहेत भारती : बसपा के लिए तन-मन-धन से समर्पित इस नेता पर भी पिछले दिनों निष्कासन की तलवार चली थी। इसी के बाद से सभी की निगाहें रामहेत भारती पर टिकी हुईं थीं। बाद में रामहेत को भाजपा ने बड़े सम्मान शामिल किया। हरगांव के पूर्व विधायक और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके रामहेत भारती के लिए भी यह चुनाव अहम है। वह भले ही मैदान में न हों लेकिन, हार-जीत उनके कद के लिए भी अहम होगी।
भरत त्रिपाठी : चुनाव से ठीक पहले पूर्व एमएलसी की इंट्री भाजपा में हुई थी। इससे पहले वह सपा में थे। उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। उस वक्त वह तीसरे नंबर पर रहे थे। भाजपा में आने के बाद उन्होंने भी पार्टी के प्रत्याशी राजेश वर्मा को जिताने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। सभाओं में भी वह दिखे। ऐसे में चुनाव परिणाम उनका भी कद तय करेगा।
रामपाल यादव : पहले सपा में थे। सपा से निष्कासन के बाद वह बसपा में शामिल हो गए। वहां भी टिकट न मिला और हंगामा हुआ तो उन्हें निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वह हाथ की शरण में पहुंच गए। भले ही मैदान में कैसरजहां हों लेकिन इस चुनाव में बिसवां के पूर्व विधायक रामपाल की भी साख दांव पर है। कांग्रेस प्रत्याशी के लिए वह कितने उपयोगी साबित हुए, यह तो वक्त बताएगा और उनके सियासी कॅरियर की भी राह तय करेगा।
जासमीर अंसारी : इनके भी सियासी कॅरियर को पहचान बसपा से मिली। अपनी हर दिल अजीज छवि के बूते सबका दिल जीता। लहरपुर के चेयरमैन बने। फिर विधायक बने और पत्नी कैसरजहां को संसद तक पहुंचाया। बसपा से निष्कासन के बाद यह दंपती कांग्रेस में शामिल हो गया। कांग्रेस ने भी सम्मान से कैसरजहां को टिकट दिया। अब इस परिणाम में इन दोनों की भी साख दांव पर है। संबंधों का भी टेस्ट
पूर्व केंद्रीय मंत्री रामलाल राही ने भी भाजपा को छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामा। उनके बेटे सुरेश राही हरगांव से भाजपा के विधायक हैं। दोनों चुनाव में भले ही साथ न दिखे हों मगर, सीतापुर और धौरहरा में भाजपा और कांग्रेस की परफारमेंस को इनसे भी जोड़कर अवश्य देखा जाएगा।
- रामपाल ने इस चुनाव में कांग्रेस ज्वाइन की तो उनके बेटे ने भी दोबारा घर वापसी कर ली और बजेहरा में अखिलेश यादव की सभा के दौरान सपा की साइकिल पर सवार हो लिए। बेटा सपा तो पिता कांग्रेस के लिए समर्पित रहे। अब देखने योग्य होगा कि कौन किसके लिए कितना उपयोगी होगा।
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