पुल बनाकर दिखाया 'आईना', अब सरकार से उम्मीद
सरायन नदी पर अस्थायी पुल बनने से दर्जनों गांवों का आवागमन होगा सुगम पक्का पुल निर्माण हो जाए तो लोगों को मिले बड़ी राहत।
सीतापुर : हुक्मरानों से फरियाद लगाते-लगाते थक चुके ग्रामीण अब श्रमदान से सरायन नदी पर लकड़ी का अस्थायी पुल बनाने में जुट गए हैं। यह पुल बनने से लगभग आधा सैकड़ा गांवों की 50 हजार आबादी का आवागमन आसान हो जाएगा। ब्लाक कसमंडा की ग्राम पंचायत हरिहरपुर में सरायन नदी के मोहार घाट पर पुल निर्माण की मांग दशकों पुरानी है। उम्मीद है कि वर्ष 2022 में बनने वाली सरकार आमजन की इस मांग को पूरा करेगी।
सिधौली विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले मोहार घाट पर पुल निर्माण के लिए ग्रामीण करीब 10 वर्षों से गुहार लगा रहे हैं। जनप्रतिनिधियों से कई बार इस समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट कराया गया। इसके बाद सेतु निगम के अफसरों ने मोहार घाट पहुंचकर जांच-पड़ताल तो की, मगर यह मसला फिर फाइलों में दबकर रह गया। अब तक इस घाट पर ग्रामीण नाव से नदी पार करते थे। कुछ दिन पहले यहां नाव भी चलना बंद हो गई। लिहाजा, ग्रामीण अब श्रमदान से यहां लकड़ी का अस्थाई पुल बनाने में जुट गए हैं।
30 हजार खर्च का अनुमान :
पूर्व प्रधान रामदास भार्गव, दिनेश यादव व अशर्फी लाल यादव आदि ने बताया कि पुल निर्माण में तकरीबन 30 हजार रुपये खर्च होने का अनुमान है। श्रमदान से बनाए जा रहे इस पुल को तीन दिन में तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। बांस-बल्ली का पुल बनाने में क्षेत्र के ग्रामीण बढ़-चढ़कर सहयोग कर रहे हैं। पुल बनने से बच्चों को स्कूल जाने, ग्रामीणों को खेत व बाजार जाने में आसानी होगी।
50 हजार आबादी को मिलेगा लाभ :
सरायन नदी के मोहारघाट पर पुल बनने रसुलवा, इमलीपुरवा, भटेलिया, झोलहन पुरवा, सिसेंडी, गुलरिहा आदि लगभग आधा सैकड़ा गांवों की पचास हजार आबादी को फायदा मिलेगा। मछरेहटा व संदना मार्ग से जोड़ने वाला यह रास्ता ग्रामीणों के लिए प्रसिद्ध नैमिषारण्य तीर्थ के लिए आवागमन भी सुलभ होगा।
भगवान दीन यादव ने बताया कि कई बार पुल निर्माण की मांग किए जाने पर भी किसी ने नहीं सुनी। समस्या से निपटने के लिए ग्रामीणों को आगे आना पड़ा। मोहारघाट पर बना लकड़ी का यह पुल जिम्मेदारों को आईना दिखा रहा है। पूर्व प्रधान रामदास भार्गव ने बताया कि मोहार घाट पर पुल निर्माण की मांग दशकों पुरानी है। जब सरकार और जनप्रतिनिधियों ने समस्या की लगातार अनदेखी की तब लोगों ने मजबूरी में खुद पुल बनाने का फैसला लिया।
दिनेश कुमार ने बताया कि जब ग्रामीणों की गुहार किसी ने नहीं सुनी तो खुद ही लकड़ी का पुल बनाने का बीड़ा उठाया। तीन दिन में पुल बनकर तैयार हो गया। पुल बनने से आधा सैकड़ा गांवों के लोगों को लाभ मिलेगा। अशर्फी लाल यादव शासन-प्रशासन की अनदेखी के बाद जिस तरह ग्रामीणों ने श्रमदान से अस्थाई पुल बनाया, वह सराहनीय है। इससे हजारों की आबादी का आवागमन आसान होगा।