लेमनग्रास से मुनाफे की हरियाली
जब की नौकरी छोड़ी तो औषधीय खेती से कमाई का स्वाद
सीतापुर: जब की नौकरी छोड़ी तो औषधीय खेती से कमाई का स्वाद चखा। खेती-किसानी में मेहनत कर पिसावां ब्लॉक के गांव भिटौरा निवासी ने साकेत सिंह उर्फ रिकू ने अपनी अलग ही पहचान बना ली। लेमनग्रास, काला गेहूं, काला आलू व सब्जियों की जैविक खेती से रिकू ने अच्छा मुनाफा कमाया। उन्हें देख आसपास गांवों के किसान भी औषधीय खेती से जुड़ने लगे हैं। कई युवा भी रिकू से खेती-किसानी के बारे में सलाह-मशविरा करने पहुंचते हैं।
गांव भिटौरा निवासी साकेत सिहं उर्फ रिकू ने लखीमपुर जिले के गोला गोकर्णनाथ स्थित केन ग्रोवर्स डिग्री कॉलेज से एमए की परीक्षा पास की। कई वर्ष नौकरी के लिए प्रयास किया। सफलता नहीं मिलो तो, उन्होंने औषधीय खेती करनी शुरू की। औषधीय खेती के अलावा उन्हें गन्ने के बेहतर उत्पादन को लेकर पुरस्कृत भी किया जा चुका है।
15 हजार की लागत, दो लाख मुनाफा
साकेत उर्फ रिकू कहते हैं कि, लेमनग्रास की एक एकड़ खेती में करीब 15 हजार की लागत आती है। एक वर्ष में लेमनग्रास की चार से पांच बार कटाई होती है। इस फसल को बेसहारा पशुओं से भी नहीं बचाना पड़ता है। बारिश और सूखे की परवाह भी नहीं रहती। एक एकड़ में करीब दो से ढाई लाख की कमाई होती है। रिकू ने इस वर्ष चार एकड खेत में लेमनग्रास की खेती की है।
काला गेहूं और आलू से कमाई
रिकू ने दो बीघा काला गेहूं और काला आलू भी बोया है। वह, जैविक खेती में केंचुआ व गौमूत्र की खाद का ही प्रयोग करते हैं। फसल अवशेष को सड़ाकरखाद बनाते हैं। इससे फसलों का अच्छा उत्पादन होता है। फसलों की सिचाई ड्रिप विधि से करते हैं। रिकू ने बताया कि, गन्ना फसल के बेहतर उत्पादन पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से दो बार 15-15 हजार रुपये व प्रमाण पत्र मिल चुका है।