दुर्लभ वस्तुओं का खजाना 'सिरौंजगढ़'
दुर्लभ वस्तुओं का खजाना है सिरौंजगढ़ गांव वालों को है नाज
अखिलेश सिंह, पिसावां (सीतापुर) : सिरौंजगढ़। दसवीं शताब्दी में राजा तड़क सिंह और मदन गोपाल का किला हुआ करता था। यहां के स्वाभिमानी राजा अपनी शर्तो पर राज करते थे। जनप्रिय राजा ने एक बार कन्नौज के राजा जयचंद को लगान देने से इन्कार कर दिया था। उस दौर में आल्हा-ऊदल ने आक्रमण कर सिरौंजगढ़ के किले को तहस-नहस कर दिया था। कालांतर में इस गांव का नाम बदलकर सेवराडीह कर दिया गया। भले ही अब यहां किला और राजघराने नहीं हैं, पर राजशाही के अवशेष आज भी विद्यमान हैं। सेवराडीह पुरानी यादों के साथ दुर्लभ वस्तुओं का खजाना भी समेटे है।
सेरवाडीह के उत्तर में 38 एकड़ भूमि जंगल-झाड़ी है। मलबे में तब्दील हो चुकी डीह के आसपास अब झाड़ी-जंगल है। इस डीह से क्षेत्र के लोगों की आस्था जुड़ी है। मान्यता है कि डीह के देवता कबीरा बाबा मन्नतें पूरी करते हैं। अमान उल्लापुर के अवनेंद्र दीक्षित और जहांसापुर के सुभाष वर्मा शुक्रवार को डीह और सुरंग को देखने सेरवाडीह गांव पहुंचे थे। जंगल के बीच सुरंग को उन्होंने करीब से देखा। इस सुरंग का अंत कहां है, यह किसी को नहीं पता।
खुदाई में मिले राजघराने के अवशेष :
सेवराडीह में जब भी खुदाई हुई, कुछ न कुछ दुर्लभ जरूर वस्तुएं मिलीं। एक ग्रामीण को वर्षो पहले हार का टुकड़ा मिला था। कुछ समय पहले खेत में बारिश के दौरान कुआं दिखा। खोदाई की गई तो उसमें वन्यजीवों के कंकाल निकले। तीन वर्ष पूर्व अल्लीपुर और सेरवाडीह में मनरेगा के तालाब की खुदाई में 20-20 फीट की साखू की लकड़ी का बोटा मिला था। सेरवाडीह ऐतिहासिक गांव है। यहां डीह का काफी महत्व है। इसकी खोदाई में मिलीं दुर्लभ वस्तुएं यहां की ऐतिहासिकता को पुख्ता करती हैं।
- रघुवीर सिंह, ग्रामीण डीह और सुरंग देखने को अक्सर लोग आते हैं। डीह पर पहले कई जगह विशाल कुआं थे। डीह यदि पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो, तो गांव के दिन बहुर जाएंगे।
- आशा देवी, प्रधान-सेरवाडीह