'मेरे पास धन नहीं है, मुझे चुनाव न लड़ाया जाए'
भाजपा के पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद जनार्दन मिश्र ने बीते दौर के चुनाव पर की बातें बताईं।
विनीत पांडेय, सीतापुर
समय के साथ चुनाव प्रचार-प्रसार के तौर-तरीकों में काफी बदलाव आया है। अब इंटरनेट मीडिया का जमाना है, एक पल में ही प्रदेश मुख्यालय से ग्राम पंचायत स्तर तक सूचनाओं का आदान-प्रदान हो जाता है। कभी एक दौर वह भी था जब कार्यकर्ता मतदाताओं के घर-घर पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करते थे। एक-एक व्यक्ति से मिलना, उनको प्रत्याशी के बारे में बताना, पार्टी नीतियों से अवगत कराना यह सब करने में काफी मेहनत करनी पड़ती थी।
वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद जनार्दन मिश्र के मुताबिक अब तो प्रचार कार्य काफी आसान हो गया है। मोबाइल फोन पर कुछ लिखा और लाखों लोगों तक अपनी बात पहुंचा दी। लेकिन, तब ऐसा नहीं था। तब का चुनाव नेता नहीं बल्कि कार्यकर्ता लड़ते थे।
कार्यकर्ता मतदाता के घर पहुंचते थे और पूरी विनम्रता के साथ मतदान करने की अपील करते थे। कार्यकर्ता ही सब कुछ थे, उन्हीं में से किसी को प्रत्याशी बनाया जाता था और बाकी सभी लोग चुनाव में उसके लिए काम करते थे। कार्यकर्ता ही घर-घर चुनाव प्रचार करते थे, पैसे भी वही जुटाते थे।
उन्होंने बताया कि सन 1989 में पार्टी ने मुझे लोकसभा के लिए प्रत्याशी बनाया। मेरे पास केवल 85 हजार रुपये थे। मैंने प्रदेश नेतृत्व को पत्र लिखा कि मेरे पास चुनाव लड़ने भर का धन नहीं है, इसलिए मुझे प्रत्याशी न बनाया जाए।
नेतृत्व ने चुनाव लड़ने के लिए निर्देश किया। फिर क्या कार्यकर्ताओं ने चंदा जुटाया और मैं चुनाव लड़ गया। प्रचार के लिए ज्यादा वाहन नहीं थे। एक जीप पार्टी की ओर से मिली थी। शेष कार्यकर्ता अपनी अपनी साइकिलों से व पैदल प्रचार करते थे। एक गांव से दूसरे गांव में जनसभा करते थे।
इस दौरान कई कार्यकर्ता हमारी सदरी की जेब में चुपचाप कुछ न कुछ राशि डाल देते थे कोई 10, 20 व 100 रुपये जो भी बन पड़े। कार्यालय पहुंचकर मैं पूरी राशि मेज पर रख देता था कार्यकर्ता उसे गिनते और कार्यालय में जमा कर देते थे। उससे प्रचार कार्य किया जाता था।
उनका कहना है उनके क्षेत्र में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र सभी बड़े नेता आए। जनार्दन मिश्र बताते हैं वर्ष 1996 में जब संसदीय बोर्ड की बैठक हुई तो किसी सांसद ने 20 तो किसी ने 30 लाख रुपये लगाने की बात कही। मैंने केवल तीन लाख खर्च की बात कही तो सभी अचंभित हो गए। मैंने बताया एक लाख पार्टी ने व एक लाख कार्यकर्ताओं ने चंदे के रूप में दिए हैं।
रूठे कार्यकर्ताओं को जाता था मनाया :
उन्होंने बताया कि एक बूथ कार्यकर्ता मुझ से कुछ नाराज हो गए, भरे समाज में उन्होंने बहुत कुछ सुनाया और चले गए। फिर मैंने उनको मनाया तब वह चुनाव कार्य में लगे। तब कार्यकर्ता रूठते थे उन्हें मनाया भी जाता था बड़ी आत्मीयता होती थी तब चुनाव होते थे। अब न तो वह कार्यकर्ता ही हैं और न वह नेता।