समझी कठिना की पीर, अब कलकल सुनने को मन अधीर
ड्रोन के जरिये नदी का किया सर्वे अब तैयार करेंगे अपनी रिपोर्ट
सीतापुर:कठिना नदी को बचाने की मुहिम के पहले पड़ाव के अंतिम दौर में न केवल जीवनदायिनी की पीर सुनाई पड़ी बल्कि, कलकल को वापस लौटाने की प्रेरणा भी मिली। बात शास्त्रों की हुई और सृष्टि के पहले पर्यावरण विद् भगवान श्रीकृष्ण के प्रसंग के जरिये जल प्रहरियों को यह अहसास भी कराया गया कि उनका किरदार कितना अहम है।
दरअसल, जागरूकता यात्रा के प्रथम पड़ाव का अंतिम रात्रि विश्राम महोली में तय था। कठिना को स्वच्छ और निर्मल बनाने का मिशन लेकर निकले जल प्रहरी और पर्यावरण प्रेमी शाम को प्रज्ञानम् सत्संग आश्रम में जुट गए थे। कठिना की कलकल वापस लौटाने की लालसा हर चेहरे पर साफ नजर आ रही थी। शाम को आश्रम के महंत विज्ञानानंद सरस्वती, आरएसएस अवध प्रांत की पर्यावरण गतिविधि के संयोजक विष्णु दत्त दीक्षित, लोकभारती के जिला संयोजक कमलेश सिंह समेत पर्यावरण प्रेमी जुट चुके थे। अब कठिना के लिए चितन की बारी थी। ऐसे में महंत विज्ञानानंद सरस्वती ने शास्त्रों का भी जिक्र छेड़ा। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया के विष से यमुना को मुक्ति दिलाई थी। कठिना के जल को पीकर बछड़े की मौत के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने यह संकल्प लिया था। अब हमें कठिना को भी 'कालिया' से मुक्त कराना है। हमें आगे बढ़ना है। इसके बाद पर्यावरण प्रेमियों ने भी अपने विचार रखे। सबने कठिना को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। सुबह यात्रा द्रोणाचार्य घाट के लिए चल पड़ी। शाम को उप निदेशक कृषि अरविद मोहन मिश्र ने द्रोणाचार्य घाट पर पहले चरण का समापन किया। 'भगवान श्रीकृष्ण सृष्टि के पहले पर्यावरण विद् थे। उन्होंने यमुना को कालिया के विष से मुक्ति दिलाई थी। अब हमारी परीक्षा 90 किमी की कठिना नदी है। अभी स्नान तो दूर कठिना के जल से आचमन करना भी मुश्किल है। हमें इस मुहिम को मिलकर सफल बनाना होगा।'
विज्ञानानंद सरस्वती, प्रज्ञानम् सत्संग आश्रम 'जल ही जीवन है। जल संरक्षण के लिए हमें सजग होना चाहिए। कठिना को पुनर्जीवित करने की पहल सराहनीय है। हम इस पहल को सफल बनाने में पूरा योगदान करेंगे। आमजन को भी इस नेक पहल से अवश्य जुड़ना चाहिए और जीवनदायिनी के संरक्षण का प्रयास करना चाहिए।।'
विष्णुदत्त दीक्षित, प्रांत संयोजक पर्यावरण गतिविधि आरएसएस