बाढ़ गई,पर जख्म बरकरार हैं हुजूर
सीतापुर: बाढ़ तो चली गई मगर, जख्म अभी बरकरार हैं। 2018 की छोड़िए, अब तक वर्ष 2017 के बाढ
सीतापुर: बाढ़ तो चली गई मगर, जख्म अभी बरकरार हैं। 2018 की छोड़िए, अब तक वर्ष 2017 के बाढ़ पीड़ितों को ही पूरी तरह मदद नहीं मिल पाई। इस साल की बाढ़ भी खत्म हो गई, लेकिन प्रशासनिक अमला अब भी कागजी घोड़े दौड़ा रहा है। समाजसेवी ऋचा ¨सह का दावा है कि लहरपुर, बिसवां व महमूदाबाद क्षेत्र के हजारों लोग प्रभावित हुए। बसंतापुर गांव के किसानों की करीब 393 बीघा जमीन बाढ़ में बह गई थी, लेकिन अब तक मुआवजा नहीं मिला। प्रशासनिक आंकड़ों में 72 बीघा जमीन ही कटना दिखाया गया है। दुर्भाग्य की बात यह है कि अभी इन्हें भी मदद नहीं मिल पाई है।
तो मुश्किल है बाढ़ पीड़ितों को मुआवजा मिलना
बाढ़ पीड़ितों के लिए संघर्षरत रहने वाली ऋचा ¨सह व विनीत का कहना है कि साल 2018 के बाढ़ पीड़ितों को तो दूर 2017 की बाढ़ में अपनी जमीन, मकान गंवाने वालों को भी मुआवजा मिलना मुश्किल है। दरअसल अब प्रशासनिक अमला चुनावी मूड में आने वाला है। कुछ महीने बाद ही चुनावी तरीख तय हो सकती है। ऐसे में पीड़ितों को सरकारी मदद मिलना दूर की कौड़ी हो जाएगा।
2017 के बाढ़ पीड़ितों के मुआवजे की मांग
बिसवां तहसील ने चार करोड़ आठ लाख नौ हजार 348 रुपये, लहरपुर ने सात लाख 38 हजार 500 की डिमांड भेजी थी। महमूदाबाद ने डिमांड नहीं भेजी। इसके एवज में जिला प्रशासन ने बिसवां व लहरपुर को लेकर चार करोड़ 15 लाख 47 हजार 848 डिमांड शासन को भेजी। शासन ने तीन करोड़ 99 लाख 79 हजार 107 माना था, लेकिन इसके एवज में शासन ने दो करोड़ नौ लाख 49 हजार 052 रुपये भेजी थी। यह धनराशि लहरपुर के 213 व बिसवां के नौ हजार 357 किसानों में बांटी गई थी।
कोट
शासन को डिमांड भेजी गई थी। धनराशि आने पर उसे किसानों में बांटा जा चुका है। बाढ़ पीड़ितों की मदद को लेकर शासन से पत्राचार किया जा रहा है। मुआवजा दिए जाने को लेकर बाकायदा लिस्ट जारी की जाती है।
विनय पाठक, एडीएम