कटान पीड़ितों के सामने रोजी-रोटी का संकट
बेबसी नदियों ने खेत व घर छीने प्रशासन से अभी तक नहीं मिला मुआवजा।
सीतापुर : बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में कटान पीड़ितों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। बाढ़ खत्म हो चुकी, नदियां सामान्य स्थिति में पहुंच गईं हैं। नदी में खेत व घर कट गए, फसलें बह गई। सड़क किनारे जीवन काट रहे यह पीड़ित परिवार अभी तक सरकारी मुआवजे से भी वंचित हैं। जिन कटान पीड़ितों के घर नदी में समा गए, उनके सामने तो अधिक समस्या है। इन लोगों को अभी तक रहने के लिए जमीन व आवास भी नहीं मिल पाए हैं।
कटान प्रभावित गोलोक कोडर ग्राम पंचायत नदियों की कटान में तहस नहस हो गई। परिवार का पेट चलाने के लिए कटान पीड़ित मजदूरी कर रहे हैं। घाघरा व शारदा नदी ने पीड़ित परिवारों का सब कुछ छीन लिया। सिर पर छत तक नहीं बची। सड़क किनारे झोपड़ी डालकर रहने को विवश यह परिवार सरकारी मदद की आस लगाए हैं। फौजदार पुरवा, कोनी पुरवा, परमेश्वर पुरवा के सदानंद, अशोक, संतोष, माया, प्रकाश, अरुण, प्रमोद कुमार, लाल जी, सगरा देवी सड़क किनारे झोपड़ी डालकर गुजर बसर कर रहे हैं। परिवार के सदस्य मजदूरी कर खाने पीने का प्रबंध करते हैं। जीविका का मुख्य साधन खेत नदी में कट गए। इसका मुआवजा इन परिवारों को अभी तक नहीं मिल सका है। रहने के लिए जमीन व आवास भी नहीं मिला। जबकि इनकी मांग वर्षों से की जा रही है। परमेश्वर पुरवा के राम अचल, लालजी, दुखहरण के घर व खेत नदी में कट चुके हैं। यह भी झोपड़ी डालकर सड़क किनारे रह रहे हैं। सरकार कब मदद देगी, इसका पीड़ित परिवारों को इंतजार है।
कोनी का अस्तित्व समाप्त
घाघरा किनारे बसे कोनी गांव का अस्तित्व खत्म हो चुका है। यहां कभी 120 परिवार रहते थे। नदी की कटान में सभी घर कट गए। वर्ष 2017 में आठ परिवार बचे थे। यह घर इस वर्ष कटान में चले गए। कटान पीड़ित सदानंद, गोमती, राधेश्याम, सतीश, राम प्रताप, माया प्रकाश, जागेश्वर ने बताया कि घर व खेत नदी में समा गए। वह सड़क पर शरण लिए हैं। रहने के लिए जमीन व आवास मिल जाए तो संकट कटे।
कटान पीड़ितों का सर्वे कराकर उनको मुआवजा दिलाएंगे। सुरक्षित स्थान पर जमीन आवंटित करने की प्रक्रिया चल रही है। पात्रों को आवास भी दिलाया जाएगा।
राजकुमार गुप्ता, तहसीलदार बिसवां