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हाथी-घोड़ा पालकी संग कहां डलेगा परिक्रमार्थियों का डेरा

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By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 10:50 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 10:50 PM (IST)
हाथी-घोड़ा पालकी संग कहां डलेगा परिक्रमार्थियों का डेरा
हाथी-घोड़ा पालकी संग कहां डलेगा परिक्रमार्थियों का डेरा

दीपक त्रिपाठी, संदना (सीतापुर) :

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सातवें पड़ाव मड़रूवा से आठवें पड़ाव जरिगवां के बीच की दूरी करीब 20 किमी है। ये रास्ता डामर वाला है पर गिट्टियां उखड़ रही हैं। रास्ते में जगह-जगह गांव का गंदा पानी भरा है। जाहिर है जिम्मेदारों की अनदेखी से परिक्रमार्थियों की परिक्रमा चुनौती पूर्ण रहेगी।

अव्यवस्थाओं का रैन बसेरा

जरिगवां के उत्तर में दो मंजिला रैन बसेरा बना था प्लाटर उखड़ने लगा है। पेयजल के इंतजाम भी अच्छे नहीं हैं। दूसरी मंजिल की छत पर चार पानी टंकी रखी हैं। इसमें काई जमी हैं ढक्कन टूटे हैं। भूतल पर परिसर में पानी की एक टंकी रखी है। पड़ाव स्थल के बाहर खेत, आम की बाग व महुवा ठाकुर स्थान पर कुल तीन हैंडपंप लगे हैं। ये पीला पानी दे रहे हैं। रैन बसेरा में 14 शौचालय हैं। पानी सप्लाई बाधित है कुछ शौचालय टूट-फुट भी गए हैं। रैन बसेरा में बिजली व्यवस्था भी लड़खड़ा गई है। रैन बसेरा में लगभग 39 पंखे लगे हैं। 10 पंखे खराब हैं। रैन बसेरा के अंदर रोशनी के लिए लगभग 60 रॉड हैं। 25 रॉड खराब हैं। परिसर में एक पानी टंकी हैं। इसकी टोटी व ढक्कन टूटा है। टंकी का पानी पीने योग्य नहीं है। रैन बसेरा में बिजली खंभों पर तार ढीले होकर जमीन पर लटक रहे हैं। कच्चे मौनेश्वर तीर्थ में पानी नहीं उग आई घास

जरिगवां में भगवान शिव का कल्याणेश्वर मंदिर है। बुजुर्ग इसे 300 से साल से भी अधिक प्राचीन बताते हैं। कई वर्षों से मंदिर का रंग-रोगन नहीं हुआ है। यहां रोशनी के इंतजाम भी नहीं हैं। जरिगवां के उत्तर-पश्चिम में बड़ा तालाब है, जिसे मौनेश्वर तीर्थ की मान्यता है। ये कच्चा है इसमें पानी नहीं है घास उगी है। महुवा ठाकुर पर ठहरे थे प्रभु श्रीराम

रैन बसेरा के सटे में महुवा ठाकुर का स्थान है। मान्यता है कि वनवास के समय फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि को प्रभु श्रीराम-सीता व लक्ष्मण आए थे। उस दौर में महुवा ठाकुर स्थान महर्षि माहू का आश्रम था। जरिगवां पड़ाव पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर डेरा डालते हैं। उस समय का ²श्य देखने योग्य होता है। कोई ऊंट तो कोई हाथी-घोड़ा और कोई पालकी से परिक्रमार्थी आते हैं। इस बार ये डेरा कहां डालेंगे, चूंकि खेतों में फसल लगी है रैन बसेरा पर्याप्त नहीं है।

- राम किशुन, जरिगवां रैन बसेरा के पीछे पश्चिम में करीब 100 मीटर की दूरी पर कल्याणेश्वर मंदिर है। इसमें कई वर्ष बीत गए हैं पर, रंगाई-पोताई नहीं हो पाई है। मंदिर पर लगी काई भी पुरानी हो चुकी है। इससे मंदिर काला दिखने लगा है। रोशनी के इंतजाम भी नहीं हैं।

- प्रदीप गिरि, महंत-कल्याणेश्वर मंदिर


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