युवाओं में है सिर्फ सजावटी पौधों का क्रेज
युवा पीढ़ी का रुझान फलदार व छायादार (अच्छे पौधे) लगाने की ओर बिल्कुल नहीं है। शौकिया तौर पर उनका नाता सिर्फ घर आंगन को आकर्षक बनाने व सुगंध बिखेरने वाले सजावटी पौधों को लगाने तक सीमित है। यह चौंकाने वाला तथ्य डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के लगभग 260 युवाओं से बातचीत के बाद निकल कर सामने आया
सिद्धार्थनगर : युवा पीढ़ी का रुझान फलदार व छायादार (अच्छे पौधे) लगाने की ओर बिल्कुल नहीं है। शौकिया तौर पर उनका नाता सिर्फ घर आंगन को आकर्षक बनाने व सुगंध बिखेरने वाले सजावटी पौधों को लगाने तक सीमित है। यह चौंकाने वाला तथ्य डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के लगभग 260 युवाओं से बातचीत के बाद निकल कर सामने आया है। यह चिता का विषय बन सकता है क्योंकि अगर देश की युवा पीढ़ी सिर्फ फूल पत्तियों के आकर्षण में डूबी रही तो आने वाले वक्त में हरियाली का दायरा न सिर्फ सिमटता जाएगा वरन फलदार और छायादार पौधों की संख्या में भी गिरावट दर्ज होगी।
पौधरोपण अभियान के तहत व्यक्तिगत रूप से युवाओं को जागरूक करने के साथ- साथ उन्हें इससे जोड़ने की जरूरत थी, लेकिन जिम्मेदाऱों ने इनकी जगह स्कूल और कालेजों को जोड़ने में पसीना बहाया, नतीजा सामने है। हर साल स्कूल कैम्पस में अभियान के तहत छात्र- छात्राएं पौधे तो रोपते हैं, लेकिन लगाव न होने से पौधों का अस्तित्व देखरेख के अभाव में चंद महीनों में ही समाप्त हो जाता है और कैम्पस आगामी वर्ष दोबारा अभियान का हिस्सा बनते हैं। यह क्रम तबतक चलता ही रहेगा जबतक युवाओं को व्यक्तिगत तौर पर जागरूक करते हुए अच्छे पौधों के महत्व व उनकी जरूरत के विषय में नहीं बताया जाता।
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जागरण के सेंपल सर्वे में युवाओं ने खुलकर अपनी राय जाहिर की। कुलदीप दूबे ने बताया कि उन्होंने शिक्षा ग्रहण करने के दौरान पौधे लगाए थे, लेकिन कभी देखभाल नहीं किया। राजन व कलीम कादरी ने बताया कि इसके लिए तो मौका ही नहीं मिलता। अलबत्ता घर में फूलों के पौधों को नर्सरी से खरीदकर जरूर लगाया है। अंशु गोंड़ ने कहा कि पढ़ाई के दरम्यान ही पौधों को गुरूजी के कहने पर स्कूली अभियान में लगाया था। अब तो रोजी कमाने की जद्दोजहद में इसके लिए फुर्सत ही नहीं मिलती। अधिकतर युवाओं का जवाब इससे मिलता जुलता ही रहा। बिथरिया के सौरभ पांडेय इस मामले में अपवाद स्वरूप मिले जो न सिर्फ खुद औषधीय व फलदार, छायादार पौधे लगाते हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करते हैं।
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- युवाशक्ति को मार्गदर्शन की जरूरत-
लखनऊ विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद् व जनपद के फूलपुर गांव के मूल निवासी डा. नरेश सक्सेना कहते हैं कि युवाओं को आधुनिक चकाचौंध भरी दिनचर्या ने भ्रमित कर रखा है। वह पौधों के नाम पर सिर्फ कैक्टस की कंटीली झाड़ियां या आंखों व चित्त को आकर्षित करने वाले फूल- पत्तियों को लगाने तक सीमित हैं। हमारा यह दायित्व होना चाहिए कि उन्हें प्रकृति व जीवधारियों के लिए उपयोगी, आक्सीजन का उत्सर्जन व कार्बन डाईआक्साइड का अवशोषण करने वाले अच्छे पौधों के बारे में जानकारी दें। पौधों को संरक्षित करने का संकल्प दिलाएं। यह कार्य हमने जिस दिन पूरा कर लिया पृथ्वी का एक बड़ा भूभाग हरियाली से आच्छादित होगा और प्राकृतिक आपदाओं की दर भी घट जाएगी।