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हरियाली में तलाश रहे खुशहाली की राह

सिद्धार्थनगर : वर्तमान परिवेश में पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से जूझ रहा है। इससे बचने क

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Jan 2018 12:07 AM (IST)Updated: Mon, 22 Jan 2018 12:07 AM (IST)
हरियाली में तलाश रहे खुशहाली की राह
हरियाली में तलाश रहे खुशहाली की राह

सिद्धार्थनगर : वर्तमान परिवेश में पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से जूझ रहा है। इससे बचने का एक मात्र विकल्प हरियाली ही है। स्थिति यह है कि विभिन्न गैर सरकारी एवं समाजसेवी संस्थाओं ने हरियाली बचाने की मुहिम छेड़ रखी है। सुरक्षित कल के लिए लोगों से पौधरोपण की अपील की जा रही है। ऐसे में एक गांव ऐसा है जो न केवल हरियाली वरन इसके जरिए तरक्की व खुशहाली की नई इबारत लिख रहा है। अमराई की छांव में पूरा गांव समृद्ध हो रहा है। इसके साथ ही वह आने वाली पीढि़यों का भी भविष्य संरक्षित हो रहा है।

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भनवापुर ब्लाक का छोटा सा गांव चुरिहार टोला गो¨वदपुर हरियाली की नई इबारत लिख रहा है। यहां के लोग पढ़े कम पर कढ़े ज्यादा हैं। उन्हें अच्छे-बुरे की समझ है। उन्होंने गांव के आंगन को हरा-भरा बनाने की मुहिम शुरू की है। महज इंटरमीडिएट तक पढ़े-लिखे अशोक जायसवाल ने अगुवाई करते हुए पहले अपनी 55 बीघा निजी भूमि में आम के पौधे लगा कर इसकी शुरुआत की। धीरे-धीरे अन्य को भी इसका महत्व समझ में आने लगा। दिनेश जायसवाल ने भी अपनी बीस बीघा भूमि पर्यावरण के नाम कर दी। ऋषिराज जायसवाल की 20 व विजय जायसवाल की 15 बीघा में अमराई लहलहा रही है। अब तो हाल यह है कि गांव का हर आदमी अपने खेत के कुछ हिस्से में आम का पौध लगा रहा है। बगल के गांव प्यूरिया में भी इसका असर दिखने लगा है। वहां पर भी राजेश ¨सह व शहजाद ने 25 बीघा में आम के पौधे लगाकर इसकी शुरुआत कर दी है। उनका कहना है कि इससे एक तो गांव में हरियाली आएगी, दूसरे आार्थिक उन्नति भी होगी। इस हरियाली में ही उनको तरक्की व खुशहाली की राह दिखाई दे रही है।

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इस बाग में मिलता है सुकून

अशोक का कहना है कि उनको इस बगिया में दिली सुकून मिलता है। आज से बीस बरस पहले जब उनके पिता संकटा प्रसाद की मौत हुई तो वह महज दस साल के थे। बागवानी के प्रति पिता के लगाव को देखते हुए ही उन्होंने यह बाग लगाया है। इसमें आकर उनको ऐसा प्रतीत होता है मानों वह प्रकृति नहीं पिता की गोद में ही बैठे हों। हर साल वह सीजन पर करीब दस ¨क्वटल आम ग्रामीणों में बंटवा देते हैं।

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अगुवाई का मिला इनाम

अशोक को इस अगुवाई का इनाम भी मिला। जाने-अनजाने उन्होंने प्रकृति की जो मदद की, उसके बदले गांव वालों ने 2015 के पंचायत चुनाव में उनको गांव का प्रधान चुन लिया। इसके बाद भी वह अपने बाग की खुद ही देखभाल करते हैं। निराई-गुड़ाई से लेकर दवा आदि के छिड़काव की कमान वह खुद ही संभालते हैं।


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