जब धर्म की हानि होती है तब भगवान अवतार लेते हैं
जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है। तब धर्म की स्थापना के लिए भगवान अवतार लेते हैं। ईश्वर साक्षात्कार के अभाव में मनुष्य का जीवन अंधकारमय हो जाता है। अपने कर्मो की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं होता है।
सिद्धार्थनगर: जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है। तब धर्म की स्थापना के लिए भगवान अवतार लेते हैं। ईश्वर साक्षात्कार के अभाव में मनुष्य का जीवन अंधकारमय हो जाता है। अपने कर्मो की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं होता है। उसके विषय विकार रुपी पहरेदार इतने सजग होकर पहरा देते हैं कि उसे कर्म बंधनों से बाहर नहीं निकलने देते। यह बातें श्रीमद् भागवत कथा एवं सामूहिक रुद्राभिषेक के पांचवे दिन कथा वाचक स्वामी सूर्यकांताचार्य जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि जब किसी महापुरुष की कृपा मनुष्य पर होती है तो परमात्मा का ज्ञान हृदय में होता है। तब समस्त अज्ञान रुपी अंधकार दूर हो जाते हैं और मनुष्य की मुक्ति मार्ग प्रशस्त हो जाता है। श्री कृष्ण जन्म प्रसंग के दौरान भगवान का जन्मोत्सव मनाया गया। श्रद्धालुओं के जयकारे से पूरा पांडाल भक्तिमय हो गया। भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरुप की झांकी निकाली गई। ऐसा लग रहा था कि मानों पूरा पंडाल ही गोकुल बन गया हो। भाजपा जिलाध्यक्ष गोविद माधव, पंडित आचार्य राम प्रकाश दास, पप्पू बाबा, शिवपूजन वर्मा, शिव प्रसाद वर्मा पूर्व चेयरमैन, टिकू वर्मा, रवि अग्रवाल, दुर्गा प्रसाद त्रिपाठी,दीपिका शाह, माधुरी मिश्रा आदि मौजूद रहे। मां की महिमा अपरंपार : धीरज कृष्ण सिद्धार्थनगर : सृष्टि संचालन में माता की अहम भूमिका होती है। माता के प्रेम और वात्सल्य से ही यह चराचर जगत चलायमान है। यह बातें आचार्य धीरज कृष्ण जी महाराज ने व्यक्त किया। वह नगर पंचायत स्थित धर्मशाला में श्रीमद्भागवत कथा का रसपान करा रहे थे।
कथा व्यास ने कहा कि महाराज दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करने में सभी रिश्तेदारों को बुलाया। इसमें भगवान शिव को न्योता नहीं भेजा गया। प्रजापति दक्ष के न्योता न भेजने के बावजूद माता सती यज्ञ में शामिल होने के लिए पहुंच जाती हैं। जबकि भगवान शिव उन्हें यज्ञ में जाने से मना भी किया। माता सती के न मानने पर यज्ञ में पहुंचने के बाद प्रजापति दक्ष ने उनका और भगवान शिव का बहुत अपमान किया। जिस पर क्रोधित होकर माता सती ने हवन कुंड मे कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। यह जानकार भगवान शिव ने वीरभद्र को प्रकट किया। जिन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया। भगवान शिव माता सती का शरीर लेकर सभी लोकों में तांडव करने लगे। विनाशकारी नृत्य को रोकने के लिए भगवान विष्णु जी ने सती के अंगो को सुदर्शन चक्र से काटकर उन्हें शक्ति स्थल के रूप में मान्यता दिलाई। धर्मराज वर्मा, संतोष सैनी, प्रभाकर दास, दिलीप गुप्ता, अविनाश, अमात, संतोष, गोविद कसौधन आदि मौजूद रहे।