श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या से जुड़ा है भारतभारी का नाता
सिद्धार्थनगर : तहसील मुख्यालय से आठ किमी दूरी पर स्थित प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल भारतभारी अपने इतिहास में कई काल खंडों का रहस्य समेटे हुए है। यहां का नाता श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या से भी रहा है। पौराणिक महत्व के अलावा ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विख्यात इस स्थल पर कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले मेले में क्षेत्रीय लोगों के अलावा प्रदेश के अन्य जनपदों से भी लोग मेले में आते है, और पवित्र सरोवर में स्नान कर पूजा पाठ करते
सिद्धार्थनगर :
तहसील मुख्यालय से आठ किमी दूरी पर स्थित प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल भारतभारी अपने इतिहास में कई काल खंडों का रहस्य समेटे हुए है। यहां का नाता श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या से भी रहा है। पौराणिक महत्व के अलावा ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विख्यात इस स्थल पर कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले मेले में क्षेत्रीय लोगों के अलावा प्रदेश के अन्य जनपदों से भी लोग मेले में आते है, और पवित्र सरोवर में स्नान कर पूजा पाठ करते है। यहां पर स्थित भरतकुंड जलाशय, शिव मंदिर, राम जानकी मंदिर, मां दुर्गा व हनुमान जी का भव्य मंदिर धार्मिक स्थल की शोभा बढ़ाने के साथ श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। भरतकुंड सरोवर का पानी हमेशा स्वच्छ व निर्मल बना रहता है। इस सरोवर में घास-फूस तक नहीं जमते। कार्तिक पूर्णिमा के अलावा विभिन्न त्यौहारों पर भी यहां मेले का आयोजन किया जाता है।
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इतिहास में वर्णन
यूनाइटेड प्रा¨वसेज आफ अवध एंड आगरा के वाल्यूम 32 वर्ष 1907 के पृष्ट 96-97 में इस स्थल का उल्लेख है कि वर्ष 1875 में भारतभारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में पचास हजार दर्शनार्थियों ने भाग लिया था। आरकोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया 1996-97 के अनुसार कुषाण कालीन सभ्यता का प्रमाण भी मिला है।
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पुरातत्वविदों का मत
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बनारस ¨हदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास के प्रो. सतीश चंद्र व एस.एन. ¨सह सहित गोरखपुर विश्वविद्यालय के कृष्णानंद त्रिपाठी ने भारतभारी का स्थलीय निरीक्षण करके मूर्तियों, धातुओं, पुरा अवशेषों के अवलोकन के बाद टीले के नीचे एक समृद्ध सभ्यता होने की बात कही। प्राचीन टीले व कुएं के नीचे दीवालों के बीच में कहीं-कहीं लगभग आठ फिट लंबे नर कंकाल मिलते हैं, जो इतने पुराने हैं कि छूते ही राख जैसे बिखर जाते हैं। कृष्णानंद त्रिपाठी द्वारा ले जाये गये अवशेषों को गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के संग्रहालय में देखा जा सकता है।
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हनुमान जी को यहीं लगा भरत का वाण
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ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में श्रीराम-रावण युद्ध के दौरान जब मेघनाथ लक्ष्मण पर बीरघातिनी शक्ति वाण का प्रयोग किया और लक्ष्मण मूर्छित हो गये तब सुषेन वैद्य के कहने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आकाश मार्ग से लौट रहे थे तो इसी स्थल पर पूजा कर रहे भरत ने अयोध्या का कोई शत्रु समक्ष कर वाण चला दिया, वाण लगने से हनुमान जी पर्वत के साथ वही गिर पड़े, जिससे उक्त स्थल पर पवित्र सरोवर का उदय हुआ। एक अन्य मान्यता यह भी है कि महाराज दुष्यंत के पुत्र भरत ने इसे अपनी राजधानी बनाया था जिससे इसका नाम भरत भारी पड़ा जो एक बहुत बड़े नगर के रूप में स्थापित हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार राम रावण युद्ध में जब रावण की मौत हो गयी तब श्रीराम पर ब्रह्म हत्या आरोप लगा तब कोई भी पुरोहित उसके निवारण के लिए तैयार नही हुआ तो गुरू वशिष्ठ ने कन्नौज से दो नाबालिग बालकों को अयोध्या लाकर जनेऊ कराकर यज्ञ पूर्ण कराया तब उनका ब्रह्म हत्या दोष दूर हुआ। लेकिन वापस घर जाने पर बालकों को घर वालों ने त्याग दिया। फलस्वरूप वह पुन: वशिष्ठ जी से आकर मिले तब श्रीराम वाण चला कर कहा कि जहां यह वाण गिरे वही अपना निवास स्थान बना कर जीवन करें। वाण भरत भारी में आ गिरा जिससे इस विशाल सरोवर का निर्माण हुआ।
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क्षुब्ध हैं समिति के सदस्य
भारत भारी पर्यटन विकास समिति के सदस्य व गांव निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश कुमार पाण्डेय इस एतिहासिक व पौराणिक महत्व वाले तीर्थ स्थल की प्रशासनिक उपेक्षा से क्षुब्ध हैं। उनका कहना है कि इतिहास के कई काल खंडों का गवाह बने भारतभारी स्थल पर शासन व प्रशासन द्वारा कोई रुचि न लिए जाने से इसकी ऐतिहासिकता विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रही है। पांडेय ने कहा कि इसके विकास के लिए पर्यटन विकास समिति गठित है, लेकिन वह भी कागजी है।